नारी रचयिता या शोषिता ....सदियों की रीत हम नहीं तोड़ सकते हैं..नर रूपी प्राणियों ने सदा ही नारी का दमन और शोषण किया है
दुर्गा की पूजा, लक्ष्मी का आदर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए किया जाता है और दामिनी की इज़ज़त को सरे आम उछाला जाता है.
मोमबत्ती जला कर विरोध दिखावे के रूप में कर के इतिहास के पन्नों में दफ़न कर दिया जाता है और फिर नारी शक्ति का आगाज़ कर के संतुलन बनाने की कोशिश की जाती है.आज भी औरतों को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है चाहे वो अपने क्षेत्र में कितनी ही कुशल क्यूँ नहीं हो.अपवाद तो हर जगह है. इक्के दुक्के उदहारण से समाज का विकास सम्भव नहीं है.सती प्रथा और बाल विवाह से मुक्ति मिली तो भ्रूण हत्या और बलात्कार के गर्त में फंस गए.दामन उनका आंसुओं से ही सींचित रहता है और उन्हें सहिष्णुता का साथ ज़िन्दगी भर देना होता है.
A big salute to all for celebrating International Women's Day