ना मोहब्बत की शिद्दत
न नफरत की हैसियत
खाकसार की फितरत तो बस खाक होने की है||
यूँ संभाल के खर्च की
ये उधार की ज़िन्दगी
मानो बचत को देख के
वो मोहलत दे देगा||
बेबसी का आलम है या मरने की ललक
की सांसो ने भी अब चलना छोड़ दिया है
अब ये चलती नहीं, इन्हे खींचना पड़ता है ||
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- SIDDHARTH JAIN