एक और खत उसके नाम
प्रियेषी ,
ये खत है मगर इसको खत मत समझना ॥जो समझना मगर कभी गैर मत समझना , बहुत कुछ है कहना, तुमको बहुत कुछ है सुनना, हो सके तो तुम भी कुछ कह देना, जबरदस्ती मत समझना , पर एक बात बोलूँ ये खत है मगर इसको खत मत समझना॥
तुमको नहीं पता तुमसे कितनी बातेँ करनी होती है, पर क्या करुँ तुम चाँद सी हो , खूबसूरती मेँ भी और दूरी मेँ भी॥ पता है जब भी तुम से बात करनी होती है ना , मैँ छत पे चला जाता हूँ , सोँचता हूँ तुमसे नजदीकी बढ जाएगी और तुम शायद ओ सुन सको जो तुम आज तक समझ नहीं सकी
मैँ बोलता रहता हूँ पागलोँ की तरह , एक बार तो तुम शर्मा भी गई थी और बादलोँ की आङ मेँ छुप भी गई थी॥तारोँ को तुम समझा लो हाँ , जब भी देखता हूँ तुम्हारी तरफ, गुस्से से टिमटिमाने लगते हैँ॥
अच्छा सुनोँ, कल अमावस है, ख्याल रखना अपना
कल मैँ फिर आउँगा , बेचैन मत होना गर ना दिखूँ तो
रात काली होगी और थोडा मै भी हूँ
हाँ और एक बात ये खत है मगर इसको खत मत समझना
शायद तुम्हारा
धैर्यकाँत