कभी कभी मैं समझने की कोशिश करता हूँ
करते हो कितनी मुहब्बत मुझसे
और देखता हूँ जब अपने नज़रिए से
तुम्हारी आँखों में बेशुमार प्यार नज़र आता है.
जब भी तुझे तनहा कर यूँ चले जाते हो,
लगता है जैसे ये भी इक अदा हो तुम्हारी
दूरियों के ज़रिये प्यार जताने की
जैसे दे रहे हो मुझे चार मौके ज्यादा
तड़प जताने के या शायद तड़प जाने के.
कभी बताने की भी कोशिश करता हूँ
मेरी खुशियों का तुमसे कितना गहरा रिश्ता है
और वो दिन साथ जब तक हो मेरे
मेरी खुशियाँ कहीं दूर जाने वाली नहीं
जानती हो कितना डर लगता है मुझे
मुझे मेरी मुस्कुराता कौन देगा अगर
चले गए दूर मुझसे तुम अगर किसी दिन.
फिर कहीं ख़ुशी भी लगती ही है कि
तुम्हारी याद दिलाते रहेंगे ये आंसू
जो पलकों पैर सजाकर जाओगे
तुम्हारी कमी महसूस कराता रहेगा
जो अकेलापन देकर जाओगे
हमेशा तुम्हारी याद दिलाता रहेगा
जो इतना प्यार देकर जाओगे
और मैं कभी कभी नहीं,
तुम्हे हर रोज़ याद किया करूंगा.
I used to write these poems long time back. These poems were never written with a humor and never had a beauty of words, but they have always been rich in one form - Emotions. Because I WAS afraid of losing her. Not anymore.