एक नए सफर पर चल पड़ा हूँ मैं,
फिर से जिंदगी के नए सांचे में ढल पड़ा हूँ मैं |
न जाने अब इस राश्ते में आएँगी कितनी ही मुश्किलें,
करके हिम्मत का आगाज, फिर आगे बाद चला हूँ मैं |
न जाने कितने ही गम सीने से लगाए है,
न जाने कितने ही पत्थरों को पूजा के काबिल बनाया है,
कुछ अनबूझे सवालों के जवाब पाने, थोड़ी तो कोशिश कर चूका हूँ मैं,
पुलिंदा बनाकर उनके जवाबों का, काँधे पर धर चला हूँ मैं |
कोशिश होगी की पालूँ सारा आसमां बंद मुट्ठी में,
अपने हाथों की आजमाइश कर चूका हूँ मैं.
चाहत होगी की कोई लिखदे मुझे किसी पन्ने पर,
क्योंकि अपना खून तो इन राश्तों पर लिख चूका हूँ मैं ||
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- Anonymous