“अब्बा मैं कहा से आई? "
6 साल की छोटी सी हया का इक छोटा सा सवाल ही था बस, पर इस छोटे से सवाल का जवाब दे पना आसान ना था मेरे लिये. शायद बचपन मे मैने भी यही सवाल अपने अब्बा से पूछा था. कुछ ढंग से याद तो नही, पर हा अब्बा ने मुझे अम्मी की ओर इशारा करके बात को टाल दिया था. इक तरह से देखा जाए तो उन्होने मेरी बात का जवाब भी दे दिया था और शायद नही भी दिया था. नासमझ सा मैं अम्मी के पास दौड़ता चला गया था, और यही सवाल उनसे पूछने लगा था. काश! मुझे याद होता की अम्मी ने मुझसे क्या कहा था. जो याद होता तो हया को मैं भी कुछ जवाब दे देता.
परियों के देश से, वो दूर चाँद तारों से, अल्लाह का तोहफा बन के लेटर बॉक्स मे लिपटे, इस तरह के क़िस्सो से उसे बहलाने का मन ना हुआ, तो कुछ सोच कर मैने कहा
"आप को जानना है आप कहाँ से आए, ह्म्म! ये तो काफ़ी मुश्किल सवाल है. अच्छा चलो पहले ये बताओ की आपके पास इंडिया का नक्शा है "
"जी अब्बा"
"तो जाओ लेकर आओ, फिर मैं बताता हू आपको की आप कहाँ से आए "
नादान सी हया, एक तबेदार बच्चे के जैसे अपने स्कूल के बस्ते मे कुछ देर टटोलने के बाद एक मुड़ा तुडा सा भारत का नक्शा ले आई. मेरे हाथों मे वो थमा के, वो फिर से चौकड़ी मार के बैठ गयी. टकटकी लगाए ये जानने को बेताब की वो आई तो आई कहाँ से.
ना जाने ये नन्हे से दिमाग़ मे ये बात कब से कौंध रही थी. उसकी आँखों मे ठहरती बेताबी देख के उसके दिल के हालात अपने आप बयान होते थे.
अब मेरी बारी थी, कुछ तो ऐसा कहना होगा जो इश्स नन्हे से मॅन की लालसा को कुछ तो शांत कर सके. हया की आँखें, कभी मेरे हाथों मे उछालती कुद्ती उस क़लम को देखती तो कभी भारत के उस नक्शे पे दौड़ने लगती. और देर ना करते हुए मैं नक्शे के उत्तरी भाग पे एक निशान बनाने लगा और फिर हया की हैरान निगाहों को देख के मुस्कुराने लगा.
"आप यहाँ से आए "
"ये क्या है अब्बा? ये कौनसी जगह है? " बेसब्र सी हया को कुछ समझ ही नही आ रहा था. अपनी मासूम सी आँखों से झाँकति उस जिगयसा से, जैसे वो मेरे दिल को चीर कर उसमे छुपे सब राज जान लेना चाहती हो.
यूँ तो आतिशी रफ़्तार से गुज़रते दिन और बूढ़े होते हुए बालो को मद्देनज़र रख कर मुझे हया के सवालों का आराम से जवाब दे देना चाहिए था, पर ना जाने क्यूँ मुझे इस बचपने भरे खेल मे बड़ा मज़ा आने लगा था
"बताओ भी ना अब्बा" हया ने इस बार थोड़ा खीजते हुए पूछा.
"ये दिल है हिन्दुस्तान का, दिल्ली, वो जगह जहाँ मैं पहली और आखरी बार आपकी अम्मी से मिला था "
"पर अब्बा, आपने तो कहा था की अम्मी मेरे मिलने से पहले ही कहीं चली गयी थी, तो फिर मैं यहाँ से कैसे आई ? " हया तपाक से बोल पड़ी.
एक ही साँस मे सब कह देना, एक ही साँस मे सब जान लेना. बचपन और बुढ़ापे मे शायद यही एक अंतर है. इक ओर बेसब्री की लहरें उफान मारती हैं तो दूसरी ओर ढलती की जिंदगी शांत रातों मे यही लहरें सागर के तट से लिपटती जाती हैं.
हया ऐसा सवाल भी कर बैठेगी इस बात से अब तक बेख़बर था मैं. कहाँ मैं इस खेल के मज़े लूटने लगा था और कहाँ उसने एक ऐसी रघ पे हाथ रख दिया जिसके ज़िक्र भर से मैं काँप उठता था.
किसी तरह खुद को संभालते हुए मैने कहा
"आपने अपना होमवर्क किया अब तक? "
"नही अब्बा, पर..."
"पहले आप होमवर्क ख़त्म करो, फिर मैं आपके सारे सवालों का जवाब दूँगा, लेकिन पहले होमवर्क "
मायूस सी हया चुपचाप अपने बस्ते से अपनी किताबें निकाल कर होमवर्क करने लगी.
मैं जानता था इस सवाल को मैं ज़्यादा देर तक नही टाल सकता था. शायद मुझे वो परियों की कहानी ही सुना देनी चाहिए थी, खुद को इस तरह परेशान तो ना पाता मैं.
क्या कहूँ ऐसा अब इस नादान सी बच्ची की मैने कभी शादी ही नहीं की, की जिस्से मैने चाहा वो कभी मुझे नसीब ही नही हुई. दिल के वो अजीब तानें बानें जो मैं खुद कभी नही सुलझा पाया कैसे उस संजीदा गुथि मे इस नन्ही सी जान को धकेलू ?
काश जो उस दिन मैं उस्से जाने से रोक लेता. काश जो अपने अहेम से उपर उठकर मैने रिया को मनाने की कोशिश की होती. काश ! तो वो शायद आज मेरे साथ होती.
पर क्या मैने कोशिश ही नही की. करी थी मैने कोशिश उन आखरी लम्हो मे अपने टूटते सपनों को बचाने की, पर शायद अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था.
जो उस रात मैं रिया को रोकने ना निकला होता तो शायद हया आज मेरे साथ ही ना होती.
क्या खौफनाक रात थी वो ! सड़क के किनारे बिछी वो 2 लाशें और एक 8 महीने की नन्ही सी बच्ची. बेख़बर इस बात से की उसने अपने मा-बाप खो दिए हैं. जो उस रात मैं ये मंज़र देख के ना रुका होता तो शायद रिया की ट्रेन के जाने से पहले उस तक पहुच पाता.
और गर जो रिया रुकने से मना कर देती तो क्या हया होती मुझे संभालने को ?
"अब्बा मैने होमवर्क कर लिया, अब तो बताओ ना ? "
अपने ही ख़यालों मे खोया मैं जान भी ना पाया कब इतना वक़्त गुजर गया. हया की आवाज़ें कानों मे पड़ी तो एक सपने से जगा हुआ पाया खुद को. खैर आज वो दिन नही जब मैं हया के सवालों के जवाब दे पाओं.
"अच्छा चलो अब आप सो जाओ, कल आपको स्कूल के ट्रिप पे जाना है के नहीं? आप वापिस आ जाओ फिर बताता हू मैं आपको की आप कहाँ से आए, ठीक है? "
हया के चेहरे पे एक शरारत भारी मुस्कान आ गयी. खुशियों से चमकती आँखों को हामी में मटकाती हुई वो उछल के मेरी गओवद् में आ बैठी .
"जी अब्बा, पर आप मुझे कहानी तो सूनाओगे ना रोज की तरह ? "
हया को उसकी पसंद की कहानी सुनके और सुलाके मैं दबे पाँव उसके कमरे से निकालने ही लगा था की पीछे से एक आवाज़ आई
"अब्बा? अम्मी आपको आखरी बार दिल्ली में ही मिली थी ना ? "
"जी बच्चे "
"कल मैं दिल्ली जा रही हू ना अब्बा, तो मैं अम्मी को ढूँढ के वापिस ले औन्गि "
छे साल की उस बच्ची के मूह से ये शब्द सुन के समझ ना आया की क्या बोलूं अब उसे. बस मुस्कुराया उसके माथे को चूमा और उसके कमरे की लाइट बंद करके चल दिया.
रोशनी के अभाव में नज़रें ढुँधलाने लगी थी या शायद अब मैं बूढ़ा हो चला था या शायद वो आँसू थे जो मैं रोक ना पाया.
Comments (13 so far )
class 8th ki Hindi class ki yaad aa gayi!! ... never missed Hindi so much ...
touched my heart!!
Thank you Everyone who read it :)
aur ye sach bhi ho sakta hai ...
and 10 poll, 10 speechless ... this is epic!! and truly deserving!!
first I thought its copied from somewhere ... but after taking poll ... i can believe it!!
@book writer : thanks for being so lavish in your praises. I just love all you guys. Atleast you guys care to read :) Writer babu rocks :)