तुम्हारे नाम के आँसू जो मेरी आँख में आयें
मेरी सुलगती रूह को ज़रा सा चैन मिल जाये
तड़पती है तरसती है, गरजती है बरसती है
ठहरी सी शयन्तिका को जो काली रैन मिल जाये
मेरी सुलगती रूह को ज़रा सा चैन मिल जाये।
रात भी ढल चुकी होगी, चाँद भी झुक चुका होगा
सुबह के धुंधलके में पहर भी रुक चुका होगा
ठहर चुके से इस पल में जो थोडा साथ मिल जाये
दो घड़ी रोने वाले मुझे दो नैन मिल जायें
मेरी सुलगती रूह को ज़रा सा चैन मिल जाये।
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- ASHISH CHAUHAN