हर कोई कहता है की की ये मासूम देश का भविष्य है भविष्य मर रहा था वो देखते रहे इसलिए नहीं क्योंकि जिस खाने को उनके स्कूल आने की वजह बनाना था उसी वजह ने उन्हें सफ़ेद चादर के बीच लिपटा दिया इसलिए नहीं की जिस खाने को उनकी रगो में उर्जा बनकर बहना था उसने उनकी रगो में जहर घोल दिया बल्कि इसलिए क्योंकि ऐसे हज़ारों गाँव में दवाओं और अस्पतालों के लिए सरकारी खजाने से निकली रकम में मंत्री से लेकर संत्री तक ने अपने अपने बच्चों के लिए हिस्सा निकाल लिया और इसलिए सेकड़ों इंसानों के गाँव में उस एक पलंग वाले दवाखाने में जरुरत के वक़्त एक भी दवा ना मिली और जमीन पर पड़े वो मासूम कब लाशों में तब्दील हो गए इसका एहसास शायद सीना चीर कर रो रहे उनके माँ बापों को भी ना हुआ होगा ...

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