यूँ तो कहने को अपने हैं सभी

कुछ याद आते हैं हर पल
और कुछ याद करते नहीं
सिर्फ यही जान पाए हैं अब तक
की अपने में खुश है वो अपने
जिन्हें अपनों की परवाह नहीं ......

उनसे करें क्या गिला
जब दुनिया का दस्तूर ही कुछ ऐसा है
सबका एक छोटा सा बसेरा है
और उस जहां के हम बाशिंदे नहीं....

न जाने कब तक ये दिल रोयेगा
किसी की सच्ची दोस्ती को तडपेगा
कमी कहीं खुद मुझमे तो नहीं
या सबकी कहानी है यही.....

यूँ तो कहने को अपने हैं सभी-२

कल तक जिन्हें अपना समझते थे
आज वो दूर हैं कहीं
और कल तक जिनके संग महफ़िलें सजती थी
आज वो अनजान है कहीं.....
दोस्ती मानो महज एक शब्द रह गया हो
दिल से दिल का आज रिश्ता ही नहीं.....

यूँ तो कहने को अपने हैं सभी
यूँ तो कहने को अपने हैं सभी!!!!!

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