Idol-Worship (Idolatry):
Idolatry is a matter of discussion for a long time. Many religions strongly reject idolatry. Is it so, Is today's man is so strong that he can worship a formless GOD? It is possible at that time when human is so pure that difference between human and GOD is very small, At that time it was possible. As it was mentioned in our religious books how human perform "yagya" or meditate to get enlighten or for nirvana, but today's human who is so much indulge in material world that Idolatry is instinctive. Idolatry is a way to become strong, main aim is to worship formless GOD. Like, by worship our parents we got familial life happy, by Idolatry we can get happy earthly world but to be happy forever (not only in this life) we have to realize and worship formless GOD.
Thnx.
मूर्ति-पूजा :
लम्बे समय से मूर्ति-पूजा एक वाद-विवाद का विषय रहा है। कई धर्मो मे इसे अधार्मिक माना गया है। क्या ये इतना गलत है, क्या आज का मनुष्य इतना महान हो गया है के उस निराकार भगवान की साधना कर सकता है? ये उस समय तो हो सकता था जब के मनुष्य इतना पवित्र था की उसमे और देवताओ मे ज्यादा दूरी नहीं थी, इस कारण से वो पर-ब्रह्म की साधना योग्य था। जैसा की हम ग्रंथो से पाते है के पहले मनुष्य यज्ञ, साधना या तपस्या से इश्वर से साक्षात्कार करता था, परन्तु आज का मनुष्य जो की इन सांसारिक नियमो मे बंधा है उस के लिए मूर्ति-पूजा स्वाभाविक है। मूर्ति-पूजा एक साधन है अपने को सशक्त बनाने का, अंतिम लक्ष्य तो पर-ब्रह्म की साधना ही है। जिस तरह माता-पिता को पूजने से पारिवारिक जीवन सुखी रहता है, मूर्ति-पूजा से सांसारिक जीवन परन्तु यदि सदा के लिए आनन्दित रहना चाहते तो साधना ही साध्य है।
धन्यवाद!