ब्रांड होती महबूबा और कार्ड होता महबूब (कस्बा से )
"फैबइंडिया की चादर में लिपट कर
सरकाये थे जब उसने पांव अपने
वुडलैंड की चप्पलों में
लुई वित्तॉं के थैले में भर कर मेकअप का सामान
निकली थी वो बाहर जाने को मेरे साथ
उसकी खूबसूरती एक ब्रांड की मानिंद
धड़कने लगी मेरे भीतर
दुनिया के तमाम बिलबोर्ड से उतरकर
बिल्कुल करीब आ गई थी मेरी बांहों के
वैन ह्यूसन की कमीज़ का कॉलर
रे बैन के चश्मे ने मेरे चेहरे को बना दिया
दमदार और दामदार
उसकी मुस्कान से न जाने क्यों बार बार
टपक रही थी
निंबूज़ की प्यास और उसके विज्ञापन से छिटकते
पानी के फव्वारे
राडो घडी से लदी उसकी कलाई
पकड़ने को जी चाहा मगर दाम के टैग ने
दूर कर दिया मुझे
उस एकांत में सुंदरी से
पैराशूट नारियल में रात भर सोक हुए थे उसके बाल
गार्नियर की शैम्पू में धुल कर जब हल्के हुए
तो हवाओं ने भी कर ली छेड़खानी
लहराते बालों को क्या मालूम
टकराने का लोक लिहाज़
मेरे चेहरे पर अटके उसके बालों ने
वही तो कहा था
तुम्हारी महबूब किसी अप्सरा लोक से नहीं आई है
अख़बारों में छपे विज्ञापन की कटिंग से बनाई गई है
वो न जाने किस किस की अदाओं की
फोटोकॉपी है।
है तुम्हारी मोहब्बत
मगर ओरिजनल नहीं है।
राजा रवि वर्मा की पेटिंग में अटकी उस औरत का देह
जिस पर लिखी जानी थी कविता,
स्थगित कर कवि ने रविवार की सुबह
बाज़ार के तमाम उत्पादों के बीच अपने प्रेम का साक्षात्कार किया
कई ब्रांडों में समाई उस औरत से लिपट कर
डेबिट कार्ड से चुका दिये
इश्क के खर्चे"