जब पड़ा नन्हा कदम उसका मेरे आँगन में तो सारी खुशियाँ मुस्काईं,
बोली मेरे कानो में आके चुपके से, मुबारक हो बेटी है घर आई |
लगा मानो लग गए हो पंख मेरे सपनो को, मैं सारी दुनिया से इतराई .
लगा हो गया मेरा साकार हर सपना, क्योंकि मैंने गढ़ी थी उस दिन एक माई |1|
हर एक फूल मेरी बगिया का, रोशन हो गया था एक अंजान रौशनी से .
लगा शबनम खिल रही हो पतझड में, आशामां से कोई परी हो उतर आई |२|
पर पता नहीं अब एक अंजान सा डर सता रहा है,चमचमाता सूरज भी अब इस डर कालिख दिखा रहा है.
कैसे बचा पाउंगी अपने आँगन का फूल मैं, जब माली ही हर फूल को मसलता जा रहा है |३|
क्यों भूलता जा रहा है हर इंसान इंसानियत को, बार-बार अपनी हैवानियत दिखाए जा रहा है .
भूलता जा रहा है नारित्व का अस्तित्व क्यों, अपने हाथों से ये गुलशन उजाड रहा है |४|
अब जब पड़ा नन्हा कदम उसका मेरे आँगन में तो सारी खुशियाँ मुरझाईं,
बोली मेरे कानो में आके चुपके से, कैसे बचा पाएगी इसे इस दुनिया से,जो बेटी है घर आई ||