जब में छोटा था, शायद छठी सातवी की बात रही होगी, तब रविवार को दूरदर्शन पर "शक्तिमान" नाम का एक धारावाहिक आया करता था। आप सब तो वाकिफ ही होंगे इस नाम से, आखिर वह पहला देसी सुपर हीरो जो था। सुपरमैन, हीमैन से लेकर स्पाइडरमैन जैसे होलीवूडिया महामानवों की जमात में Made in India शक्तिमान हमें अपना सा लगता था। हम बावलों की तरह उसके इंतज़ार में घडी की सुइयों की तरफ नज़र गडाए बैठे रहते थे। पिताजी भी इस मौके का फायदा उठाने से नहीं चुकते थे, शर्त लगा दी, homework पूरा करने पर ही टीवी चलेगा। हद्द है यार ये बड़े इतने वो क्यों होते है, पर फिर भी हम जैसे तैसे घसीटे मार मार कर होमवर्क पूरा कर ही लिया करते थे। फिर शक्तिमान uncle आते थे अपनी धुरी पर गोल-गोल घूम अँधेरा कायम नहीं होने देते थे।
कुछ episodes निकले की अखबारों में खबर आई की शक्तिमान देख किसी बच्चे ने बिल्डिंग से इस उम्मीद में छलांग लगा ली की उसे बचाने शक्तिमान आएगा पर ऐसा न हुआ और वह बचाया ना जा सका, इस तरह की कुछ ख़बरें और आई। विरोध का दौर शुरू हुआ और बाद में मुकेश खन्ना साहब मतलब शक्तिमान जी को खुद सामने आकर कहना पड़ा की भाई मैं भी आपकी तरह एक इंसान हूँ, मुझे भगवान् ना समझिये।
चलिए छोडिये वे तो बच्चे थे, पर इस मुल्क के बड़े बुजुर्गों को क्या हुआ है, जो इस तरह हाथ पर हाथ धरे किसी के आने की उम्मीद लगाए बैठे है। वे इस इंतज़ार में बैठे हैं की कोई आएगा और उनके सारे दुःख दर्दों को मिटा जाएगा। एक शहंशाह, एक महामानव जो इस सड़े-गले system को और इस मुल्क की किस्मत बदल डालेगा। एक ऐसा व्यक्ति जो संत्री से लेकर मंत्री तक सबको ईमानदार बना देगा। एक ऐसा सुपर हीरो जिसके खौफ से हर एक आतंकवादी थर्रा जाए, जिसके रहते पाकिस्तान को अपनी औकात याद आ जाये। बस यही ख्वाब लिए हर आम आदमी 2014 का इंतज़ार कर रहे है। ना मियाँ ना, पीठ पर चद्दर बांधे कोई हीरो नहीं आने वाला। ना उड़ कर ना घूम घूम कर।
जिन नरेन्द्र मोदी साहब की प्रतीक्षा में आप आँखें लगाए बैठे है, उनके हाथ में भी कोई जादू की छड़ी ना होगी, जो घुमाया और बदल गया देश, सुधर गयी इकॉनमी।
पर ऐसा नहीं की बदलाव नहीं आएगा, बदलेगा ये देश, ये मुल्क बदलेगा, बस जहां खड़े हो वहां सुधार लाओ। क्योंकि याद रखना 100 बेईमानों में से सिर्फ 1 नेता होता है, 99 हम और आप होते है।