"अरे ओ रिक्शा वाले भइया... पैसे ना लेना इनसे.. जीजा हैं तुम्हारे.."

ये तुमने उस auto वाले से तब कहा था जब तुमसे आखिरी बार रुबरु होकर मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जा रहा था... मैंने तुम्हें इस बात के लिए डांटा था,पर आज भी गाहे-बगाहे याद करके हंसी आ जाती है.
वैसे आदतन हुई बातचीत मे पूरे रास्ते रिक्शा वाले ने तीन बार तुम्हे 'दीदी' कहा..

तुम्हें कई बार कहना चाहा कि वो Red jeans तुमको सूट नहीं करती है उसपर पर्पल सैंडल..उफ्फ !पर fashion का तकाजा ही ऐसा है,मैं चुपचाप तारीफ करता रहा..

वो green चूडीदार,जिसे पहनकर तुम स्टेशन आयी थी,कमाल लग रही थी.. metro से बाहर आते वक्त मै दूर से तुम्हें पहचान भी नही पाया... आदत डाल लो,हिंदुस्तानी कपड़े तुमपर कहीं ज्यादा फबते हैं..

मुझे पता है,तुम घरपर normally काजल नहीं लगाती पर शायद उस दिन मैं आया था इसलिए और वैसे भी सुना है कि 'अपनो की नजर पहले लगती है..'भूत' लगती हो,ये तो बस तुम्हारा बनावटी गुस्सा देखने के लिए कहा था..वैसे काजल वाली तुम्हारी आंखें,कुछ ज्यादा ही बातें करती है..

वो PVR का evening show याद है..? तुम बेकार में उस टिकट वाले पर गरम हो रही थी,जब उसने corner सीट offer की थी..वो corner वाली सीट मैने ही मांगी थी.. इसलिए कि तुम्हारी दूसरी तरफ कोई आ ना जाए..

और एक आखिरी बात ..वो तुम्हारा dinner पर जाने का plan जो मैंने बहाना बनाकर cancel किया था याद है..? मुझे बुखार नहीं था झूठ कहा था मैनें.. अब 'वो' batting कर रहा था तो मैं कैसे छोड देता यार.. पर तुम cricket से इतना चिढती क्यूं हो.. और जब तुम्हेंं पता है कि जब 'वो' खेल रहा होता है तो मैं तुम्हारा call receive नहीं करूंगा तो फिर बार बार call क्यूं..और फिर खुद ही नाराज़ हो जाती हो..

तुम्हारा अगला call इसके पूरे 8 दिन बाद उस मासूम से सवाल के साथ आया..उस दिन भी match था,पर मैने call receive कर लिया..तब मुझे पता चला कि हर बेमानी सा दिखता सवाल कई बार बेमानी नहीं होता..
बहुत कुछ छिपा होता है उनमें.. मासूमियत,चाहत,sorry... बहुत कुछ... उस एक सवाल ने सारे जवाब दे दिये.. इतनी मासूम कि बिना जाने कि 'वो' आज का match नहीं खेल रहा,तुमने सिर्फ मुझे खुश करने के लिए फोन पर पूछ लिया कि..

" sachin ने कितना बनाया.."

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