ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर,
आराम करो, आराम करो।
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो
अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे
बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा
जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है,
वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ --
है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा
जो रक्खा है सो जाने में।

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