जमींदार के लौंडे ने दुखीराम किसान की बेटी छुटकी के साथ दुर्व्यवहार किया, दुखीराम और बाकी गाँव वालों में जमींदार का बड़ा खौफ था पर जैसे तैसे हिम्मत जुटा कर वे लोग जमींदार की चौखट पर इंसाफ की गुहार लगाने पर पहुंचे। जमींदार ने सब कुछ सुनकर अपने वाहियात लौंडे को वहीँ बुला भेजा। लड़का बड़ी बेशर्मी के साथ बालों में हाथ घुमाता हुआ आया, ना कोई शर्म ना कोई पछतावा। जमींदार साहब तेज़ आवाज़ में बोले "बदतमीज़ ये क्या किया तुमने ? खानदान के नाम पर कलंक लगा दिया तुमने। अरे इस गाँव के लोग हमारे बच्चों की तरह हैं, और आज तुमने हमे इनके सामने शर्मिंदा कर दिया। छुटकी तुम्हारी बहन जैसी है, चलो माफ़ी मांगो उस से।"
बेहया लौंडा छुटकी के सामने जाकर हाथ जोड़ कर वहां से निकल गया। जमींदार जानता था गरम तवे पर पानी डालकर उसे कैसे ठंडा करा जाता है। गाँव वाले खुश, भैया जमींदार के लौंडे ने माफ़ी मांग ली और क्या चाहिए ? ख़ुशी में पागल हुए ये लोग छुटकी के उन आंसुओं को भूल ही गए। भूल गए की छुटकी की इज्ज़त माफ़ी से वापस ना आएगी। गरीब आदमी को तो उम्मीद ही नहीं होती, इतना तो बहुत है।
बस कुछ ऐसा ही लालू यादव के मामले में हुआ, 950 करोड़ के चारा घोटाले में ये मामला 37 करोड़ का था। अदालत ने दोषी क्या ठहराया जनता खुश तो मीडिया बावली हो गया। मानो भ्रष्टाचार के रावण का अंत हो गया। खुशियाँ मनाई जा रही है पर किस बात की ? 4-5 साल अन्दर रह लेंगे पीछे से उनकी दूकान बेटा चलाएगा। भई अगर ऐसी facility available है तो इस मुल्क के सभी गरीबों को अन्दर कर उनके परिवार वालों को 35-35 करोड़ बाँट देने चाहिए। कुछ साल के दुःख के बाद जिंदगी भर खुश रहेंगे।
कुल मिलाकर बात यह है की क्या वाकई ये सजा काफी है ? एक आदमी ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई, सालों तक कुर्सी से चिपका रहा पर देश समाज का कोई विकास ना किया, राज्य को गरीबी के दलदल में इस कदर धसा दिया की आज की सरकार विशेष राज्य के दर्जे की भीख मांगती घूम रही है। उन कुछ करोड़ रुपयों के लिए नहीं बल्कि उन करोड़ों लोगो के साथ विश्वासघात करने के लिए ऐसे लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा भी कम होगी।
हम नहीं समझेंगे क्योंकि हम तो common man हैं हम तो इसी बात का जश्न मनाएंगे की चलिए atleast किसी politician को सजा तो मिली। मनाइये मनाइये .....
Superb , superb, superb ... Simply superb.