शहर भर की सारी माओं में होड़ लेगी है, बच्चों को सल्लू बनाने की, complan से लेकर bournvita, apple से लेकर अनार, बादाम से लेकर काजू तक ठूस रही है। सर्दी और गर्मी के लिए भी अलग-अलग चवनप्राश और ना जाने क्या क्या। बस ठूसो सारा दिन, पेट में थोड़ी भी जगह खाली ना रह जाए। आंटी जी यदि नौकरीपेशा हो तो ये जिम्मा बच्चे की आया पर आ जाता है। सुबह से शाम तक फ़ोन पर आँखों के तारे की diet और homework का हिसाब लेती रहती है। कुल मिलाकर सिर्फ पूर्ण शारीरिक विकास की चिंता। बस हो गयी जिम्मेवारी पूरी।
बच्चा क्या पढ़ रहा है यह पता है पर क्या सीख रहा है, उसका कोई अंदाजा तक नहीं क्योंकि ना पापा को ना मम्मी को वक़्त है, उसे अच्छी बातें सीखाने का, सही गलत का फर्क बताने का। आखिर घर गाडी की EMI इतनी ही है की दोनों का नौकरी करना जरुरी है। थके हारे घर लौटे मम्मी पापा को बाल मन में उपजे लाखो सवालों का सामना ना करना पड़े इसलिए playstation या tablet पकड़ा दिया जाता है या फिर सेकड़ों कार्टून चैनल तो है ही। सोते वक़्त कहानिया सुनाने से पहले माएं पुछा करती थी आज तुमने स्कूल में मास्टर जी को परेशान तो नहीं किया ना ? उनका हर कहना माना ना ? पर आजकल उनका सवाल होता है किस टीचर ने मारा तुम्हे ? जरा नाम बताओ उसका ? अगले दिन प्रिंसिपल से शिकायत। बच्चे हेकड़ी में और बेचारा मास्टर डरा हुआ। बस पल गया राजा बेटा।
शहर बाज़ार में किसी लड़की के साथ कुछ गलत होने के बाद हर चैनल पर बहस शुरू हो जाती है की मुल्क का एजुकेशन सिस्टम ख़राब है, स्कूलों में नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। ये वो और ना जाने क्या क्या। पर क्या वाकई सारी जिम्मेदारी सिर्फ स्कूलों की होती है ? माँ बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं। बच्चे के चरित्र की इमारत चाहे स्कूलों में खड़ी होती हो पर नींव घर पर तैयार होती है। सही और गलत में उस पर कौन हावी होगा ये उसकी नींव की मजबूती पर निर्भर करता है। माँ की शिक्षा और पिता की सीख यह निश्चित करते हैं की वह किस और अपने कदम बढाएगा।
कुल मिलाकर बच्चे को Bournvita देने से शायद दूध का calcium waste नहीं होगा, पर यदि आपने उसे वक़्त ना दिया तो आपका उम्र भर का किया धरा सब waste जरुर हो जायेगा। फैसला आपका।