दिल्ली मेँ फ्लाइओवर इतने ज्यादा है पर अन्डरपास इतने कम क्योँ ?
क्योँकी इस शहर मेँ पहियेँ ज्यादा हैँ और इंसान कम
वो तो है !!!
Hmmmm
मूवी शुरू ही होने वाली है , चलते हैँ अंदर
शुरू होने वाली होगी , पहले मुकेश हराने को मारेँगे तब शुरु होगी फिल्म
कैँसर जैसे बीमारियोँ के लिए वो उपयुक्त माँडल था
मुझे लगता है उसको मरने से पहले Splitsvilla जैसे कार्यक्रमोँ मेँ भी अपनी उपस्थिती दर्ज करानी चाहिए थी
उसकी मौत का हमकोँ यूँ मजाक नहीं उङाना चाहिए
लोग तो इस देश मेँ नेहरु की मौत का भी मजाक उङाते हैँ
नो कमेँट्स
सीट नंबर क्या है ?
क्या फायदा बता कर , तुम अंदर जाके फिर भी टाँर्च तो जलवावोगे ही !!!
हा हा हा
हाँल तो पूरा खाली है , सिर्फ Corner seat फुल है
क्या फर्क पङता है , हाँल भरा भी होता तो कुर्सियोँ को छोङ कर कौन हमको पहचानता है यहाँ
हाँ वो तो है
.
.
कहानी अच्छी थी , इमरान एक्टेड वेल
कहानी थी अच्छी , पर थी अधूरी
अधूरी कहानी ही अच्छी होती है
क्योँ?
अधूरी चीजेँ न कभी पूरी होती और न खतम
Hmmm !! आँखेँ नम हो रही है तुम्हारी , नमी बुनियाद के लिए अच्छी नहीं
Hmmmm
तो मैँ चलूँ ?
तुम रूकते कब हो ?