लौट के बुद्धू घर को आये भाग – 3
September 13, 2015 at 5:03pm
एक बार पुन: विनम्र निवेदन कि अगर आपने भाग -१ और भाग -२ नहीं पढ़ें हैं तो पहले अगर उन्हें पढ़ लेंगे तो बेहतर रहेगा और निरन्तरता बनी रहेगी. अब आगे....
मैंने अमेरिका में पाया कि वहां जनसंख्या घनत्व कम हैं और संसाधन ज्यादा. वहां के एअरपोर्ट में भारत की तरह कोई विजिटर एंट्री टिकट नहीं होता. कोई भी बिना किसी काम के एअरपोर्ट के अन्दर आ-जा सकता है, सिक्यूरिटी होल्ड तक बेरोक-टोक घूम सकता है, एअरपोर्ट के अन्दर की दुकानों से सामान खरीद सकता है और रेस्तौरेंट में खाना खा सकता है. उसके बाद भी एअरपोर्ट खाली पड़े रहते हैं. ऐसा लगता है जैसे आज किसी हड़ताल का मिलाजुला प्रभाव हो. मैं सोचता हूँ अगर भारत में ऐसा कर दिया जाए तो लोग अपनी-अपनी चादर लेकर सोने भी एअरपोर्ट में चले जायेंगे. कारण दोनों जगह का एक ही है; जनसंख्या. वहां कम होना और यहाँ ज्यादा होना. लेकिन सिक्यूरिटी होल्ड में जाने से पहले आपकी ऐसी चेकिंग होगी कि आप याद रखेंगे. आपको अपनी हर धातु की बनी चीज अपने शरीर से उतार देनी है, चाहे वो बेल्ट हो, चैन हो, पर्स हो, ब्रेसलेट हो या कोई अन्य चीज. जूते तक उतार कर एक्सरे के लिए रखने होंगे. अब नंगे पैर आपको फुल बॉडी स्कैनर से गुजरना पड़ेगा. इस में आप को अपने दोनों हाथ सर से ऊपर उठा कर खड़ा होना होगा और आपके पूरे शरीर को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से स्कैन किया जाएगा. इसमे ऑपरेटर को आपका पूरा शरीर लगभग नग्न दिखाई देगा और साथ कोई भी वो चीज जो आपने अपने शरीर में छुपाई हो. 2012 के बाद से एक कानून के अनुसार मशीन आपके शरीर के चित्र को एक कार्टून चित्र से बदल देगी ताकि आपकी निजता (Privacy) का सम्मान हो सके. शायद कहानी अपनी मूल धारा से भटक रही है और ज्यादा तकनीकी हो गयी है. इसे यही छोड़ते हैं.
सेनफ्रांसिस्को की मेट्रो को BART कहते हैं, जिसका फुल फॉर्म है बे एरिया रैपिड ट्रांजिट. इसे बे एरिया क्यों कहते हैं आप धीरे धीरे आगे पढेंगे. वहां मुख्य शहर को या शहर के केंद्र को डाउन टाउन कहते हैं. हम लोग लगभग रोज शाम को बार्ट पकड़ के डाउनटाउन जाते थे. टिकट एक स्वचालित मशीन से लेना होता था जो कि करेंसी नोटों और सिक्को को पहचानती थी और आपको रेजगारी वापस भी करती थी. अब ये मशीन दिल्ली मेट्रो में भी लग गयी है किन्तु यहाँ उसको चलाने के लिए एक आदमी भी नियुक्त करना पड़ता है. ट्रेन में सीटो के अतिरिक्त साइकिल पार्क करने की भी जगह थी. मैंने वहां किसी भी किशोर या युवा को सामान्य नहीं पाया. हर कोई मुझे हिप्पी या पंक स्टाइल में ही मिला. एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसके बाल सामान्य हो या रंग-बिरंगे ना हो. डाउनटाउन में माल्स थी लेकिन वो भी लगभग खाली-खाली मतलब बहुत कम भीड़. मैं ये ही सोचता रह गया कि जब भीड़ इतनी कम है तो माल का खुद का खर्चा कैसे निकलता होगा. हमने यहाँ के एक बार्ट स्टेशन में एक भिखारी को भी देखा लेकिन वो अल्लाह या भगवान के नाम पर भीख नहीं मांग रहा था बल्कि गिटार बजा कर भीख मांग रहा था. वैसे सेनफ्रांसिस्को कैलिफ़ोर्निया का चौथा और अमेरिका का तेरहवां सबसे जयादा जनसंख्या वाला शहर है लेकिन एक दिन हम रात को डाउन टाउन से एअरपोर्ट लौटते हुए गलती से एअरपोर्ट से एक स्टॉप पहले सेन ब्रूनो उतर गए तो आप यकीन नहीं करेंगे कि पूरे स्टेशन पर हमारे अतिरिक्त कोई भी नहीं था. यहाँ पर हॉरर फिल्म वाली फीलिंग हुयी. ये एक भूमिगत स्टेशन था अत: हो सकता है कि भूमितल पर कोई टिकट खिड़की के पास रहा हो. जब थोड़ी देर बाद दूसरी ट्रेन आयी तब हमारी जान में जान आयी
शहर के जिस हिस्से को केंद्र मान कर हम जाते थे उसका नाम था पॉवेल. पॉवेल के आसपास ही कई मॉल, थिएटर, होटल और रेस्तौरेंट थे. पास में ही सेनफ्रांसिस्को का मशहूर यूनियन स्क्वायर था. ये अमेरिका के 1861 से 1865 तक चले गृह युद्ध के समय रैलियाँ करने और सैनिको को सहायता करने की वजह से ऐतिहासिक महत्तव रखता है. मुख्य शहर इसी पॉवेल और यूनियन स्क्वायर के आप पास के क्षेत्र में बसा है. ये पूरा वाणिज्यिक (कमर्शियल) क्षेत्र है. सेनफ्रांसिस्को तीन तरफ से समुन्द्र से घिरा है काफी सारी पहाडियों पर बसा है जिसकी वजह से ये बहुत उंचा नीचा है. कई जगहों पर तो सड़को पर ढलान इतना ज्यादा है कि आम चालक शायद ही गाडी चला पाए. सड़के आश्चर्यजनक रूप से एकदम सीधी है और सभी घर लगभग एक जैसे और एक दम अनुशासित ढंग से बने हुए है. ज्यादातर घरो में पार्किंग नहीं है और कारे सड़को पर ही खडी रहती है. हर सड़क पर एक बोर्ड लगा है जिसमे लिखा है कि उस क्षेत्र की सफाई किस दिन होगी और उस दिन कोई वहां कार पार्क नहीं कर सकता. मुझे ज्यादातर घरो में बालकोनी नज़र नहीं आयी. इसका कोई सम्बन्ध यहाँ अक्सर आने वाले भूकम्पो से हो सकता है. पूरे शहर में साफ सफाई बहुत थी.
सेनफ्रांसिस्को की चर्चा वहां की केबल कार के बिना पूरी नहीं हो सकती. केबल कार सेनफ्रांसिस्को का एक बड़ा पर्यटक आकर्षण (टूरिस्ट अट्रैक्शन) है. खास बात ये है की ये हमारे हरिद्वार के मनसा देवी उड़नखटोले या गुलमर्ग के गंडोला की तरह केबल पर लटक कर नहीं चलती बल्कि ये जमीन पर रेल लाइन जैसे एक ट्रैक पर चलती है और इसे चलाने वाला केबल भूमिगत होता है. केबल एक नियंत्रण कक्ष में एक बड़े से पहिये पर खुलता और लिपटता रहता है जैसा आपने सामान्य केबल कार में देखा है. इस केबल कार के सामान्य केबल कार की तरह नीचे गिरने का तो कोई खतरा नहीं है क्योंकि ये जमीन पर ही चलती है लेकिन ढलान बहुत ज्यादा होने से ये कहीं फिसल ना जाए इसलिए इसमे तीन अलग अलग तरह के ब्रैकिंग सिस्टम होते हैं. सॉरी सॉरी फिर से टेक्निकल बाते शुरू हो गयी. ये केबल कार पॉवेल से ही चलती थी; तीन अलग अलग मार्गो के लिए. हमने फिशरमेन्स वार्फ जाने का 5 डोलर का टिकट लिया और लाइन में खड़े हो गये. थोड़ी देर में केबल कार आयी, सब यात्री उतर गए और कंडक्टर ने नीचे उतर के एक और स्टाफ के साथ पूरी केबल कार को 180 घुमा दिया. दरअसल जहाँ से केबल कार शुरू होती है या समाप्त होती है उस स्टेशन पर विशेष किस्म की गोलाकर रेल की पटरी होती है जिसे टर्न टेबल कहते है. इस टर्न टेबल पर केबल कार को घूमते हुए देखना भी काफी विस्मय का काम है. केबल कार में सफ़र करना ऐसा ही है जैसे दार्जिलिंग या शिमला की टॉय ट्रेन में सफ़र करना. लगभग 1 घंटे की ऊँची नीची और बड़ी दिलचस्प यात्रा के बाद हम बे स्ट्रीट पहुंचे. यही पास में फिशरमेन्स वार्फ है. अंग्रेजी में Wharf शब्द का अर्थ है मनुष्य निर्मित बंदरगाह. यहाँ पर दुकाने हैं, रेस्तौरेंट्स हैं, मदिरालय हैं, गेम्स हैं, जादू के शो हैं, बहुविमियीय (Multidimentional) थियेटर हैं, एक्वेरियम हैं, व्हेल मछलियों का शो है. जब हम पहुंचे तब शाम ढल चुकी थी और हल्की हल्की बारिश हो रही थी. अलग अलग मदिरालयो और रेस्तौरेंट से अलग अलग तरह के पाश्चात्य संगीत की स्वर लहरियां उठ रही थी. समुन्द्री पवन धीरे धीरे बह रही. ज्यादातर लोग जोड़ो में घूम रहे थे. कुल मिला कर बड़ा ही रूमानी माहौल था. ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी इंग्लिश फिल्म के सेट पर हो या फिर ये सब सच ना हो कर ख्वाबो-खयालो की दुनिया हो. काफी देर घूमने के बाद हम एक संगीतमय मदिरालय में घुस गए. मदिरालय नौजवान युवक-युवतियो से भरा पड़ा था. सभी हास-परिहास, संगीत, नृत्य और मदिरापान में तल्लीन थे. आप समझ ही गए होंगे कि हमने वहां क्या किया होगा. कसम से पहली बार सेन फ्रांसिस्को में किसी जगह मजा आया.
सबसे अंतिम दिन हमारी कक्षा आधे दिन में ही समाप्त हो गयी तो हमने गोल्डन गेट ब्रिज घूमने का कार्यक्रम रखा. एक टैक्सी भाड़े पर ली. चालक नेपाली था और हिंदी अच्छे से जानता था. उससे शहर के बारे में काफी कुछ जानने को मिला. यात्रा तो ठीक ही रही लेकिन पूरे रास्ते बारिश होती रही. गोल्डन गेट ब्रिज पर भी हम ठीक से गाडी से बाहर निकल कर नहीं घूम पाए. खैर ब्रिज पर यात्रा करना ही काफी रोमांचक अहसास रहा. लौटते हुए वहां का मुख्य बंदरगाह देखा जिसमे अलग अलग नम्बर की पायर्स थी.
सेनफ्रांसिस्को LGBT समुदाय का एक विशेष केंद्र है और इस विषय में कई आन्दोलन यहीं से शुरू हुए हैं. LGBT क्या है जानने के लिए गूगल बाबा की शरण में जाए. सेन फ्रांसिस्को में बहुत सारी बड़ी बड़ी कंपनियों के मुख्यालय हैं जैसे लेवी स्ट्रास जींस, गैप, ड्रॉपबॉक्स, वीब्ली (मेरा व्यक्तिगत ब्लॉग इसी वेबसाइट पर है), एल्प, ट्विटर, उबेर, मोजिल्ला, विकिमीडिया आदि आदि.
मेरी इच्छा थी कि हम सेन फ्रांसिस्को और वहां के आसपास के क्षेत्र को ठीक से देखे, लोगो से मिले, वहां की सभ्यता-संस्कृति को जाने, किसी गाँव में जाए, असली अमेरिका को देखे, प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करें. मेरे विचार से डिस्को, बार, माल्स और होटल्स तो सब जगह एक से ही होते हैं, लेकिन हमारी टीम के शेष लोग चाहते थे कि वो लासवेगास देखें. वो बहुमत में थे और अकेले यहाँ रुकने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाया. इस तरह आठ फरवरी की सुबह हम अपने होटल से चेक आउट करके लास वेगास के लिए उड़ चले.
इस संस्मरण का सबसे दिलचस्प, रोमांचक और अंतिम हिस्सा होगा लासवेगास और ग्रैंड केनियन की कहानी.