लौट के बुद्धू घर को आये भाग – 2
September 6, 2015 at 2:08pm
अगर आपने “लौट के बुद्धू घर को आये भाग – 1” नहीं पढ़ा है तो मेरा निवेदन है कि इस संस्मरण को पढ़ने से पहले आप उसे अवश्य पढ़े. अब आगे.......
मिनियापोलिस से सेनफ्रांसिस्को की फ्लाइट चार घंटे की थी. जब हम ये फ्लाइट पकड़ रहे थे उस समय वहां स्थानीय समय के अनुसार शाम के चार बजे थे लेकिन हमारे शरीर की जीववैज्ञानिक घडी हमें बता रही थी कि तुम्हारे देश में इस समय सुबह के साढ़े तीन बजे हैं. ये समय की बातें मैं विस्तार से इस लिए लिख रहा हूँ कि आप हमारी हालत ठीक से समझ पायें. आप बिलकुल भी ना घबराएं, एक बार सेनफ्रांसिस्को पहुँचने के बाद मैं ये बार बार समय बताना बन्द कर दूंगा. चार घंटे की उसी प्रकार की कष्टमयी यात्रा के बाद हमारे हिसाब से सुबह साढ़े सात बजे और उनके हिसाब से शाम के छ: बजे हम सेनफ्रांसिस्को पहुँच गए. आप कहेंगे कि चार बजे चले और छ: बजे पहुँच गए तो चार घंटे की यात्रा कैसे हुयी? तो भाई अमेरिका में अलग अलग राज्यों के स्थानीय समय अलग अलग है वहां हमारे जैसे सिर्फ एक ही टाइम नहीं है. अब कुल समय की बात करें तो एक तारीख को सूरत से शाम चार बजे के ट्रेन में बैठने के बाद तीन तारीख की सुबह साढ़े सात बजे यानि कि चालीस घंटे की यात्रा और अगर कुल जगने का समय देखे तो एक तारीख के सुबह छ: बजे से तीन की सुबह साढ़े सात बजे मतलब अडतालीस घंटे से भी ज्यादा समय तक ना सोना.
क्योंकि हमारा प्रवासन परीक्षण (Immigration Check) मिनियापोलिस में ही हो चुका था इस लिए सेनफ्रांसिस्को में कोई ख़ास औपचारिकताओ का सामना नहीं करना पड़ा. पूरी यात्रा के दौरान के दौरान मेट्रिक्स का अन्तर्राष्ट्रीय सिम कार्ड कही भी नहीं चला उसमे अलग अलग तरह की त्रुटियाँ (Errors) आती रहीं. इसी दौरान मुझे पहली बार पता चला कि व्हाट्सअप बिना मोबाइल नेटवर्क के, सिर्फ वाई-फाई इन्टरनेट से भी चल सकता है. वही हमारा एक मात्र संपर्क सूत्र था. उसी के माध्यम से ग्रुप के अन्य लोग जो कि सीधे दिल्ली से सेनफ्रांसिस्को पहुंचे थे उनसे संपर्क किया. उन्होंने बताया कि एअरपोर्ट के बाहर से होटल की खुद की मिनी बस निशुल्क लेने आती है. एअरपोर्ट के बिल्कुल बाहर व्हीकल लेन को क्रॉस करने के बाद बहुत सारे बस स्टॉप थे जिन पर अलग अलग होटल के नाम लिखे हुए थे. हमने रेड रूफ होटल वाला बस स्टॉप ढूँढा और बस का इन्तेजार करने लगे. बस की आवृति (Frequency) आधा घंटे की थी. हमारे सिवाय बस में जो भी यात्री थे उनमे ज्यादातर अलग अलग एयरलाइन के पायलट या क्रू मेम्बर्स थे. होटल एअरपोर्ट बोलेवार्ड (फ्रेंच में बोलेवार्ड का अर्थ होता है चौड़ी सड़क) इलाके में था जोकि एअरपोर्ट से लगभग साढ़े छ: किलोमीटर था. होटल पहुँचने पर चेक-इन काउंटर के स्टाफ का व्यवहार भी मित्रवत नहीं था. वो मशीनों की तरह काम कर रहे थे. सामान उठाने के लिए किसी स्टाफ की व्यवस्था नहीं थी. खुद ही सामन खींच कर अपने कमरे में पहुंचे. जब रूम सर्विस से कुछ खाने के लिए मंगाने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि आपको नीचे रेस्तौरेंट में ही खाना पड़ेगा. कमरे में मंगाने पर ना सिर्फ दस प्रतिशत शुल्क अतिरिक्त होगा बल्कि सर्विस टाइम भी कम से कम एक घंटा होगा. हम रेस्तौरेंट में गए वहां हमें अपने ग्रुप के बाकी लोग भी मिल गए. पहले सबने जैक एंड डैनियल का पान किया गया फिर भोजन. भोजन में भी कोई रोटी तो मिलनी नहीं थी. हमारे काम का सिर्फ चावल था. किसी तरह से पेट भरा और अपने रूम में सोने चल दिए. उससे पहले पार्किंग में खड़े हो कर एक सिगरेट भी पी क्योंकि कमरे में सिगरेट पीना सख्त मना था.
कमरे में आराम और सुविधा की हर चीज मौजूद थी. टी/कॉफ़ी बनाने के लिए सारा सामान और बिजली की केतली, माइक्रोवेव ओवन, रेफ्रीजिरेटर, इस्तरी करने के लिए प्रेस, डिजिटल घड़ी में ही ऍफ़ एम रेडियो भी, जिसमे हमें ढूढने पर एक हिंदी चैनल भी मिल गया. कॉरिडोर में वाशिंग मशीन, आइस क्यूब डिस्पेंसर, सोडा मशीन, कमरे में मौजूद टी वी तो बहुत ही ज्यादा उच्च कोटि का था. ये टी वी लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) से जुडा था. इसमे आप चाहे तो अपना बिल देख सकते हैं, चेक आउट करने के निर्देश दे सकते हैं, चाहें तो फिल्मे आर्डर कर सकते हैं जिनका शुल्क सीधे आपके बिल में जुड़ जाएगा. आप किसी को बताईयेगा नहीं इस टी वी में नीलवर्णी चलचित्र देखने का भी विकल्प था और उसमे अलग अलग प्रकार की श्रेणियां थी कि आप किस प्रकार का नीलवर्णी चलचित्र देखना चाहते हैं. एक चलचित्र देखने का मूल्य था पंद्रह डॉलर. हमारे समूह के एक सदस्य ने गलती से रिमोट दबा दिया और शुल्क उसके बिल में जुड़ गया जबकि उसने फ़ौरन टी वी बन्द कर दिया था. बाद में रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति के साथ काफी माथापच्ची के बाद वो शुल्क उसके बिल से हटाया गया. हम छ: लोगो में से मुझे मिलाकर दो लोग अपनी शरीक-ए-हयात अर्थात धर्मपत्नी के साथ आये थे और चार लोग अकेले. मैंने उन चारो को अमेरिका वालो को ठगने का एक धाँसू आडिया दिया. क्यों ना आप चारो लोग एक रूम में बैठ कर एक साथ ये चलचित्र देखे. इस तरह पंद्रह डॉलर की फिल्म एक आदमी को सिर्फ पौने चार डॉलर में देखने को मिलेगी. अब भगवान जाने उन्होंने मेरे इस अमूल्य सुझाव पर अमल किया या नहीं. खैर......
हम सेनफ्रांसिस्को में कुल पाँच दिन रहे. हम दो तारीख की शाम को पहुंचे थे, तीन से सात तक हमारी ट्रेनिंग थी. आठ की सुबह हम लासवेगास गए और दस की शाम वापस सेनफ्रांसिस्को आ गए. इससे आगे की कहानी को दिन और समय के हिसाब से बताने पर ये बहुत लम्बी और बोरिंग हो जायेगी. अब मैं आपको इस यात्रा की मुख्य मुख्य बातें और घटनाये बताता हूँ.
होटल के विवरण से आप ये तो समझ ही गए होंगे कि होटल मैं भौतिक सुविधाएँ तो सारी थी लेकिन मानवीय संसाधनों की घोर कमी थी. आपको अपना हर काम खुद ही करना है किसी सहायक या बैरे की बात तो भूल ही जाईये. हम लोग सुबह का नाश्ता सब लोग मिल कर किसी एक के कमरे में करते थे. ये नाश्ता साथ लाये हुए सूखे पैक्ड खाने और वहां से खरीदे हुए दूध, ब्रेड, केले आदि का होता था. साढ़े आठ बजे हम निशुल्क एअरपोर्ट ड्रॉप वाली बस पकड़ लेते थे क्योंकि ट्रेनिंग एअरपोर्ट में ही थी. शाम को उसी तरह की बस से वापस होटल आ जाते थे. जैसा मैंने पहले बताया कि बस में ज्यादातर यात्री एयरलाइन्स के क्रू मेम्बर्स होते थे, उसका कारण ये था कि होटल जिस इलाके में था उसमे बहुत सारे होटल थे और ये क्रू मेम्बर्स नाईट स्टे के लिए इन होटल्स में रुकते थे. बस का चालक बस रोक कर सबका सामान चढ़ाता और उतारता था और बदले में क्रू मेम्बर्स उसे पांच या दस डॉलर की टिप देते थे. हमें एक दिन में दो बार उस बस में बैठना होता था इसलिए हमारे लिए उसे रोज टिप देना संभव नहीं था. कुल मिला कर चालक की दृष्टी में हम अवांछित यात्री थे. अंतिम दिन जब मैंने उसे बड़ा दिल खोल कर दो डॉलर की टिप दी तो उसने मुझे बड़ी हिकारत की नज़र से देखा जैसे कह रहा हो बस इतनी ही औकात है?
ट्रेनिंग में हम छ: लोगो के अतिरिक्त इजराईल का एक मोटा सा व्यक्ति था, जिसे हम प्यार से सांड कहते थे (उसके सामने नहीं), दो सेनफ्रांसिस्को की महिलाये, एक लासवेगास की महिला और एक कुरासाओ की महिला थी. कुरासाओ (Curacao) नाम का देश कहाँ है ये आप खुद गूगल में ढूंढ लेना. हमारे शिक्षक महोदय कनाडा के थे. सेनफ्रांसिस्को एअरपोर्ट वालो की तरफ से क्लास रूम के अतिरिक्त अन्य कोई व्यवस्था नहीं थी. एक पेंट्री/ रसोई थी जिसमे टी टाइम में कॉफ़ी पी जा सकती थी. साथ में कुछ बिस्कुट या डूनट भी रहते थे. कभी कभी कोई जूस भी होता था. लेकिन सबसे ख़राब बात ये थी कि हमारे खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. हमें लंच टाइम में खुद नीचे जाकर अपना खाना खरीद कर खाना होता था. ये काफी मँहगा पड़ता था. मुझे हमेशा अपने दिल्ली के ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की याद आती थी जिसमे आज भी वहां रहने वाले प्रतिभागियों के लिए तीनो वक्त के खाने के व्यवस्था है और ना रहने वालो के लिए दोपहर के खाने की, साथ में दो वक्त की चाय-कोफी बिस्कुट/ नमकीन या पकौड़ो के साथ. और अगर प्रशिक्षक या प्रतिभागी अन्तर्राष्ट्रीय हो तो हम कैसे बिछ जाते हैं. सबसे पहले तो उसे होटल से लेने के लिए गाडी भेजी जाती है. फिर फूलो से स्वागत, दीप प्रज्वलन और ना जाने क्या क्या. मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि जब एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षिका ने ट्रेनिग स्कूल की एक दीवार पर सीलन होने की शिकायत की थी तो तत्काल रात में ही उस दीवार को पूरा खुरच कर नया पेंट कर दिया गया था. इसी तरह जब उसने कैंटीन के स्टाफ के सर पर टोपी और हाथो में दास्ताने ना होने की शिकायत की थी तो अगले ही दिन पूरा स्टाफ टोपी और दस्ताने पहन कर खाना सर्व कर रहा था. बाकी सब के लिए हमारी कैंटीन में सेल्फ सर्विस होती है लेकिन विदेशी के लिए उसे उसकी टेबल पर खाना परोसा जाता है. यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था लेकिन दिल को सुकून देने वाली बात ये थी कि हमारे प्रशिक्षक की स्थिति भी हमसे कोई बेहतर नहीं थी. वो बेचारा भी खरीद कर खाना खाता था और शाम को अकेला ही बस पकड़ कर चला जाता था. उसे भी पूछने वाला कोई नहीं था. सेनफ्रांसिस्को वाली दो महिलाओं में से एक भारतीय मूल की थी लेकिन बहुत लम्बे समय से वहां रहती थी. जब हमारी खाना ना मिलने की शिकायत उस तक पहुँची तो उसने अगले दिन हमें एक डिब्बा बूंदी के लड्डू और एक डिब्बा मठरी ला कर दी और हमसे क्षमा मांगते हुए कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से केवल इतनी ही मदद कर सकती हूँ. ये लड्डू-मठरी हमारे सुबह के नाश्ते के काम में आये. हमारे प्रशिक्षक महोदय टी ब्रेक में कहते थे “लेट्स ग्रैब अ कप ऑफ़ कॉफ़ी”. मेरे ज्ञान के अनुसार ग्रैब का मतलब होता है झपटना, छीनना, कब्जा करना, जैसे लूट मची हुयी हो. मेरा ये सब बताने का उद्देश्य है हमारे और उनके बीच के सांस्कृतिक अंतर को रेखांकित करना.
गोल्डन गेट ब्रिज, फिशरमेन्स वार्फ, डाउनटाउन आदि आदि की बातें अगले अंक में
लास वेगास, ग्रैंड कैनियन और हुलापाई जनजाति की बाते चौथे और अंतिम अंक में
तब तक राम राम....