एक फिल्म को आप बेहतरीन या अच्छा तभी कहते है जब आप जो उम्मीद लेकर उसे देखने जाते है वह उस पर खरी उतरे .. और भाग मिल्खा भाग के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ .. भाग मिल्खा भाग से मुझे बहुत उमीदें थी पर कहीं न कहीं सिनेमा हाल से बाहर निकलते वक़्त वह पूरी होती नज़र ना आई .. फिल्म को व्यावसायिक तौर पर हिट बनाने के लिए बेवजह रोमांटिक गाने ठूसे गए, बंटवारे वाले दृश्यों में दर्द कम नाटकीयता ज्यादा झलक रही थी ऐसा लग रहा था जैसे जंजीर का रीमेक देख रहे हो .. दर्शकों को हंसाने के लिए कुछ डायलोग डाले गए जिसने इस फिल्म के वजन को कम कर दिया क्योंकी वह सहज हास्य नहीं था ठूसा गया था .. और फिल्म के अंत में पाकिस्तानी को हरा दर्शकों की वाह वाही लूटने का कई बार बार आजमाया हुआ फार्मूला ... कुल मिलकर ऐसा नहीं की फिल्म दर्शकों का दिल जीतने में नाकाम रहेगी .. सिनेमा हाल भरे रहेंगे कलेक्शन भी अच्छा रहेगा पर कहीं न कहीं कुछ कमी है जो खलती रहेगी .. निर्देशन की बात करें तो एक और जहां होलीवूड की फिल्मों में छोटी से छोटी बारीकी का ध्यान रखा जाता है वही इस फिल्म में निर्देशक को इस मामले में कम अंक मिलेंगे .. मिसाल के तौर पर 1950 में भारत में जहां रेल नेटवर्क के हाल खराब थे पर फिल्म में सोनम कपूर के बगल वाले स्टेशन पर इलेक्ट्रिकल सिग्नल प्रणाली लगी दिखाई गयी .. 1960 में मिल्खा सिंह जी royal enfield के सन 2000 वाले मॉडल पर घूमते नज़र आते है .. हद्द है .. जहां तक एक्टिंग की बात करे मिल्खा सिंह के किरदार के लिए फरहान अख्तर ने बहुत मेहनत करी है पर एक्टिंग थोड़ी कम .. सोनम कपूर कब आई कब चली गयी पता भी नहीं चला .. फिल्म का संगीत ठीक ठाक है .. निश्चित तौर पर इस फिल्म की तुलना पान सिंह तोमर के साथ की जायेगी और निश्चित तौर पर ही हर दर्शक को पान सिंह तोमर ज्यादा बेहतरीन नज़र आएगी .. फिर भी इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है .. for more updates plz like my page on facebook "anand bhatia mathura wale"