भईया दो रुपए के चने देना" चने वाले ने उसे चने दे दिए। ज्योही उसने चने को मुह में डालना चाहा उसकी नजर सामने खड़े दो बच्चो पे पड़ी। बदन पे कुछ चिथड़े के समान लिपटे कपड़े, आखें और गालो के बीच एक जंग छिड़ी थी अन्दर की ओर धंसने की। पेट से हड्डियाँ बाहर निकलने को बेताब दिख रही थी। मालूम होता था उनकी पतली सी टांगो ने काफी दर्द के साथ उनके हलके से शरीर का वजन उठाया हुआ था। उसे उनपे दया आ गयी। उसने वो चने का ठोंगा उन दोनों के बीच रख दिया और चला गया।"चना आहा मसाला भी है एकरा में इ तो बड़ा ही चटपटा होगा" "हमका याद है एक बार जब बाबूजी मेले में ले के गए थे तब उहा खाए थे कितना अच्छा था" दोनों के ही मुह में पानी आ रहा था सोच सोच के। पर उन्हें लग रहा था की आखिर इसका बटवारा कौन करे अगर सामने वाले ने ज्यादा खा लिया तो।"इ लाली न बड़ी तेज है अगर हम पहिले ही अलग अलग नि किये तो इ पक्का ज्यादा खा जाएगी" "इ जमुनिया के हाथ तो हमरा से बड़ा है एकर मुठ्ठी में तो ज्यादा आएगा अगर अईसे ही खाना चालू किये तो इ तो सब खा जायेगा" दोनों के मन में विचार तेजी से चल रहे थे कभी खुद ज्यादा खाने के तो कभी..."पर हम इहा आराम से चने खाए अउर उहा घर में...उहा भी तो सब भूखे है..माई ने भी तो दो दिन से कुछ नि खाया हमने तो कल सुबेरे ही खेत में से चुराके दोउ टमाटर खाए थे हम इका बोल देते है हमरा हिस्सा दे दो भाई हम तो घर जाके खायेंगे" "मुन्ना तो रो रहा होगा अउर उसने तो कभी चना खाया भी नाही अगर उसको खिलाये तो कित्ता खुश होगा हम तो कहे देते है हमको ठोंगा में दे दो अउर तुम अपना ले के खाई लो" पर सवाल अब भी था की आखिर इसका बटवारा कैसे हो। दोनों के मन में एक बात आई क्यों न एक एक चने का बटवारा किया जाये, एक उसका एक मेरा। ये सोच के ज्योही उन दोनों ने चने के ठोंगे के तरफ देखा, तो पाया की एक कुत्ता चना खा रहा था जब कुत्ते को भगाया तो देखा की उस ठोंगे पे बस एक ही चने का दाना बचा था। दोनों एक दुसरे के तरफ निराश नजरो से देखा इतने में लाली ने वो चने का दाना उठाया और मुह में डाल लिया। जा..जमुनिया का मुह खुला का खुला रह गया ये क्या एक दाना बचा था और वो भी...तभी लाली ने दांत से उसके दो टुकड़े किये और आधा उसके तरफ बढ़ा दिया। सचमुच गरीबी ने उनके शरीर को कमजोर तो बना दिया था पर उनके मन पे उसका कोई असर न हो सका। दोनों ने आधा आधा खाया और हाथ में हाथ डाल चले गए। आज तो और भी स्वादिष्ट हो गया था वो... " चना".....

Tags: Civics, Poverty

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