उस अँधेरी स्याह रात में..
जब उदासियाँ ..
हाफ्ती सी..
कमरे के चारो ओर..
दौड़ती फिरती थी..
जब तन्हायिया..
छिपकली सी..
दीवारों पे इधर उधर..
सरकती फिरती थी..
मैंने हलके से..
खोला दरवाजे को..
जो हवा आने को..
तेरी याद..
आ गयी चुपके..
तकिये के पास आ..
बैठ गयी छुपके..
वो संकरी सी गली..
बिछ गयी..
फिर से..
मैंने देखो तुझको..
बाते करते मुझसे..
थाम के..
तेरा हाथ..
मिलने का वादा..
किया तुझसे..
नींद अब भी..
बालकनी में खड़ी..
हवा खा रही थी..
उसे तो ..
पता भी न था..
तेरी याद..
मुझे ख्वाबो में..
ले के जा रही थी..
नरमी के साथ..
तकिये ने ..
मुझे सहलाया..
चादर ने ..
थोड़ा खिसक कर..
मेरे लिए जगह बनाया..
रौशनी चाँद की..
छिपा दी बदलो ने..
और तेरी याद ..
लोरी सुनाने लगी..
वही तेरे होठो पे..
सजते गीत..
गूंजने लगे..
सुनकर दीवारे..
मुस्कुराने लगी..
कुहासो को सुलगा..
सर्दी कश भरने लगी..
तेरी याद ..
पसर गयी ..
बगल में..
सरसराहट करती..
हवा खेलती रही
पत्तो से..
दूर देखा..
तो कही..
सुबह का बस्ता उठाये..
सूरज आ रहा था..
बदलो की..
ओट से..
उठ अब जाने को..
तयार थी..
तेरी याद..
उसकी वो मदहोशी..
वो बेताबी..
वो लडखडाना..
वो घबराना..
बिखरी सी..
वो अदा..
सिमटी सी..
वो हया...
करती थी बयां..
क्या हुआ था ..
तेरी याद के साथ..
उस अँधेरी स्याह रात में..
जब.........