गुमसुम सा जीवन
ढला जा रहा है
पन्नों के साये में जी लूँ कहाँ तक?
ये शब्दों की हद से बढ़ा जा रहा है,
कि रोटी का भूखा नहीं है ये जीवन,
कि रोटी के पीछे चला जा रहा हूँ।
किन्हें मैं सुनाऊँ
क्या क्या सुनाऊँ
कि किसका ये गम
मैं कहे जा रहा हूँ?
चला जा रहा हूँ
बढ़ा जा रहा हूँ।
चला जा रहा हूँ
बढ़ा जा रहा हूँ।
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- PRAVEEN CHOUDHARY