बूंदों में आके, तरसाती है बारिश
फिर फूहारों से मन को बहलाती ये बारिश |
मुर्झे फूलों को खिलाती ये बारिश,
रोते हुओं को मुसाकाती ये बारिश |
गर्मी की तपिश में एक मिठा सा मज़ा है ,
कड़कती ठंड में मनो इक सज़ा है ,
अपनो से हंसी ठिठोली का मौसम,
दिल में छुपे प्यार को जताती है बारिश |
ख्वाबो को यादों में भीगो के,
आँखों में आँसू लाती ये बारिश,
फिर उन्ही आँसुओं को अपने में छुपा,
धीमें से मुस्काती है बारिश |
गमो को रुख़सत कर,
खुशियों की आहट लाती है बारिश |
लाखों की दुआ लेकर,
फिर आने की कसक छोड़ जाती ये बारिश |
पर लगता नहीं इसे अब अपना कोई,
पर लगता नहीं इसे अब अपना कोई,
तभी तो अब नही आती ये बारिश |
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- SIDDHARTH JAIN
Comments (2 so far )
AKANKSHA SRIVASTAV
simply wow
July 16th, 2012