(Memory of my childhood)

पिता के बाद.........
बची हुई माँ
अचानक
कितनी निस्तेज
लगने लगती है.
एक नए प्रतिबिम्ब मे
तब्दील हुई
खुद को ही नहीं
पहचानती है,
बेरंग आँखों की
उदासी से
उद्वेलित मन को
बांधती है,
सुबह-शाम की
उँगलियाँ थामें
अपने-आप ही
संभलती है,
तूफान के प्रकोप को
समेटती हुई
रुक- रुक कर
चलती है.
सूनेपन को
जाने किस ताकत से
हटाती है,
यादों के प्रसून-वन में
हँसती-मुस्कुराती है,
भावनाओं के साथ
युद्ध करते हुए,
आँसुओं को
पी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.

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