फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
वो हवा की खूशबू की तरह फैल था मेरे चारो ओर
मै उसे महसुस कर सकता था छू सकता ना था
रात भर उसकी हि आहट कान मे आती रही
झाँक कर देखा गली मे कोइ भी आया न था
अक्स तो मौजुद था पर अक्स तनहाई का था
आइना तो था मगर उस मे तेरा चेहरा न था
आज उस ने दर्द भी अपने अलहदा कर दिये
आज मै रोया तो मेरे साथ वो रोया ना था
ये सभी विरानिया उस के जुदा होने से थी
आँख धुन्दलाइ हूई थी शहर धुन्दलाया ना था
याद करके और भी तकलीफ़ होती "प्रवीण"
भुल जाने के सिवा अब कोइ भी चारा न था
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- PRAVEEN CHOUDHARY