कई कम्पनियों में 60 कि उम्र पार कर गए लोगों को extension दे दे कर नौकरी पर बनाये रखा जाता है। ऐसा इसलिए नहीं कि कम्पनियां उनके द्वारा दी गयी सेवाओं का सम्मान करती है, बल्कि इसलिए क्योंकि वे किसी और को उस पोजीशन के लिए तैयार नहीं कर पायी होती है। इसलिए झक्क मार कर उन्हें भारी भरकम पगार देना उनकी मजबूरी बन जाता है। Obviously उनका तजुर्बा बाकियों के मुकाबले कहीं अधिक होता है पर उम्र के साथ नए बदलावों को पचा पाने कि उनकी क्षमता भी बेहद कम हो जाती है क्योंकि इतने वक़्त में उनके काम करने का एक ढर्रा बन जाता है जिन्हे बदल पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
कुछ यही हाल हमारी सेनाओ के साजो सामान का है। MIG विमानों को जैसे तैसे हथोड़ा मार मार कर चलाया जा रहा है। बेचारे विराट (विमान वाहक पोत) को retire नहीं होने दे रहे। जंक लग चुकी हवाई सुरक्षा प्रणाली को आज भी use किया जा रहा है। शायद ही विश्व में आज कही इनका इस्तेमाल होता होगा। ये हालात इसलिए नहीं कि हमारे पास हथियारो कि खरीद के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, बल्कि हम वक़्त पर फैसला नहीं ले पाते। सेना कि जरूरतों कि फेहरिस्त सालों तक लाल फीताशाही के मकड़जाल में अटकी रहती है क्योंकि रक्षा खरीद कि ना कोई सही नीति है, ना कोई नियत है।