ग़ुमनाम रहे …….मशहूर रहे
कभी पास रहे ..कभी दूर रहे
तेरी अलबेली ….. दुनिया से
कभी ख़फ़ा कभी ..मसरूर रहे

सब हासिल था सब पाकर भी
सागर के किनारे... जाकर भी
केवल हिस्से में.. प्यास आयी
कितने बेबस .…..मजबूर रहे

वो महल दुमहले.....खड़े करें
जो बड़े हैं उनको…...बड़े करें
ये मेरी छोटी सी…..….बस्ती
चाहे लाख ग़मों से... चूर रहे

तुम देख न पाये ...आँखों में
मेरी भोली सी …....बातों में
वो एक झलक…. सच्चाई की
तुम क्यूँ इतने ….मग़रूर रहे

०८-११-२०१३
-शिव

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