ट्यूशन की बिमारी कॉलेज में भी फैली हुई थी। हर मास्टर में होड़ लगी थी बच्चे पगाड़ने की। कभी डर से तो कभी प्यार से घर का address बता दिया जाता था। बात ना मानी तो practical में खुदा भी नहीं बचा सकता था, फ़ैल होना पक्का। घटियापन इस कदर बढ़ रहा था कि एक के घर के सामने से गुजरते हुए दूसरा देख ले तो तो अगले दिन सबके सामने किसी ना किसी बात पर भड़ास उतारी जाना तय होता था। ऊपर से कुछ मस्का मारु लौंडे मार साहब को पल पल कि खबर दिया करते थे, कि कौनसा छोरा कौन से मास्टर के यहाँ ट्यूशन जा रहा है। बस फिर क्या मानसिक प्रताड़नाओं का दौर शुरू। कुल मिलाकर शिक्षा का बाज़ार खुला हुआ था।
कुछ यही हाल आज कि राजनीति का हो गया है। चुनावों से पहले कांग्रेस छोटे दलों को अपनी और लाने के लिए कुछ ऐसी ही कवायद में जुटी है। बिहार में नितीश को लुभाया जा रहा है तो UP में मायावती पर डोरे डाले जा रहे है। पहले मायावती पर चल रहे सभी cases से उन्हें बरी करा दिया गया फिर उनके मेहनतकश भाई के 400 करोड़ रूपये लौटाए गए और आज दिल्ली के पॉश इलाके के तीन बंगले उनकी झोली में डाल दिए गए। गिरने कि भी एक सीमा होती है। यहाँ सारी सीमाओं को तोडा जा रहा है। कभी CBI का डर दिखाकर कभी किस तरह कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है।
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