मंडी जाकर देख लीजिये, प्याज तो फिजूल ही बदनाम है सब्जी तो कोई भी सस्ती नहीं, टमाटर भिन्डी, लौकी या किसी भी सब्जी का दाम साठ सत्तर रूपये किलो से कम नहीं है। दालों का हाल तो और भी बुरा है सब सैकड़ा पार कर चुकी है। शायद हमे आपको तो दाम भी पता नहीं होंगे, जिंदगी में और भी बहुत काम है, रेट पूछने का टाइम किसके पास है। पर जरा सोचिये उनके बारे में जो गली मोहल्ले में कचरा उठाने का काम करते है, उन दिहाड़ी मजदूरों के बारे में, घर घर जा कर बर्तन कपडे साफ़ करने वालो के बारे में उनका क्या ? उनकी सब्जी में पानी बढ़ रहा है हाँ ढूंढ़ने पर एक दो आलू के टुकड़े मिल जायेंगे। दाल का मुंह देखे तो बरसो बीत गए, पर मीडिया को सिर्फ प्याज कि पड़ी है। सरकार जो गिरायी थी उसने।
कुछ यही हाल नरेंद्र मोदी का। 2002 का जिन्न आज भी उनके पीछे लगा है। हर मंच पर उन्हें इस सवाल का जवाब देना ही पड़ता है। ऐसा नहीं कि बाकी मुख्यमंत्री दूध के धुले है। असम के दंगो का जिक्र कोई नहीं करता ना ही मुजफ्फरनगर दंगो के लिए कोई अखिलेश के कान खीचता है। यह मत समझिये कि मैं मोदी का हिमायती हूँ पर दंगों में ये भेद कैसा ? अगर 2002 गलत था तो 2013 के असम और मुजफ्फरनगर दंगों के लिए भी कांग्रेस और अखिलेश सरकारों को माफ़ नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ मोदी के खिलाफ मोर्चा लगाने से कुछ नहीं होगा। कुल मिलाकर बद से बदनाम बुरा होता है भाई।
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