छोटी छोटी इच्छाओं पर, जी लेते हैं, मर लेते हैं
यूँ ही हँसते- रोते, जीवन-यात्रा पूरी कर लेते हैं
गगन, धरा, जल, वायु, अगन में अपनी भी तो हिस्सेदारी
पर हंगामा हो जाता है, बिन माँगे हम गर लेते हैं
अड़ते भी हैं, डरते भी हैं, लड़ते भी हैं स्थितियों-वश
लेकिन, शान्ति रहे, इस कारण कुछ समझौते कर लेते हैं
धीरे धीरे पड़ जाती है, लत भी ऐसी अजब, ख़लिश की
खाली होता एक पियाला, दूजा गम से भर लेते हैं
कुशल खिवैये अब तो वे ही, जो न रखते मोह दिशा से
जिधर हवा का रुख़ हो, अपनी कश्ती मोड़ उधर लेते हैं
चिंता मत कर ! जीवन नश्वर ! क्या खोएगा? क्या पाएगा?
कहते बाबा; पर चिंता को छोड़ सभी कुछ हर लेते हैं
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- PRATAP SINGH
Comments (4 so far )
DAVID ERICKSON
Awesome
November 3rd, 2013
Author
Thank you so much David!
November 3rd, 2013
Author
thank you so much Sambhavee !
November 3rd, 2013