साफ़ सुथरे कपडे पहने सभ्य, शालीन चेहरे। धर्म में विश्वास अधर्म से घृणा, एक आदर्श समाज कि कल्पना। क्या वाकई ? नहीं कतई नहीं। सभ्यता के इस चोले के पीछे छिपा है, एक डरावना घिनोना चेहरा, एक दरिंदा। इंसान तृप्त होगा तो ये छिपा रहेगा, आकार नहीं लेगा। पर जब भूख, भय, लालच हावी होता, तब सफ़ेद चादर तार-तार हो जाती है, तब ये काला शैतान जन्म लेता है और धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेता है। अपना पराया, सही गलत कुछ नज़र नहीं आता। ये लोग जो तुम्हे नज़र आ रहे है, सत्य असत्य के ज्ञान से भरे, पाप पुण्य कि बातें करने वाले। स्वर्ग का मार्ग दिखाने वाले, नर्क से मुक्ति दिलाने वाले। छीन लो इनसे जो इनका है, इनकी खुशियां, इनका सब कुछ। वे खूंखार हो जायेगे, मरने मारने पर उतारू। बस ऐसा ही है यह समाज।
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