आज सुबह सवेरे facebook खोलते ही एक नामी पत्रिका की एक चर्चित महिला सम्पादक का status मेसेज पढ़ा, मोहोदया ने लिखा था "करवाचौथ का नाश हो, सत्यानाश हो" उनके इस विचार की आलोचना करना सही नही है क्योंकि यह उनकी व्यक्तिगत सोच हो सकती है या खुद पर आधुनिक विचारों से लबरेज़ होने का तमगा चस्पाने की ख्वाहिश या फिर facebook पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और सेकड़ों हज़ारों Likes पाने की जद्दोजहद, यह कुछ भी हो सकता है। छोडिये इन सब बातों को क्योंकि दो लफ्ज़ ज्यादा निकल गए तो हम पर दकियानूसी पुरुष मानसिकता से पीड़ित होने का आरोप लगा दिया जाएगा।मुद्दा करवाचौथ है उसी पर बात करते है।
क्या अपने प्रियजन की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करना गलत है ? अब आप कहेंगे की स्त्रियाँ ही सजा क्यों भुगते, तो भैय्या हमने कब कहा की व्रत रखने का ठेका बेचारी औरतों का ही है पुरुष भी रखे।हुम तो कहते है की उस दिन घर में चुल्हा ही ना जलाइये। हम तो यह दावा भी नहीं करते की व्रत रखने मात्र से आपका जीवन साथी भीष्म पितामह की भाँती चिरायु को प्राप्त करेगा। हम तो मात्र यह कहने का प्रयास कर रहे है की इन तीज त्योहारों के पीछे छिपी भावना और इनके महत्व को समझना बेहद जरूरी है। आज के इस युग में पति और पत्नी दोनों ही अपनी अपनी नौकरियों में बुरी तरह व्यस्त होते है, सप्ताह सप्ताह भर बात करने का अवसर तक नहीं मिलता। बड़ी मुश्किल से रविवार को दो घडी बात हो पाती है। ऐसे में रिश्ते की मिठास कहीं खो सी जाती है, इतना वक़्त बाहर गुजरता है की एक दूसरे की कमी खलना ही बंद हो जाती है। आदत सी हो जाती है एक दूसरे के बिना रहने की और ऐसे में छोटी सी अनबन भी विकराल रूप धारण कर लेती है। छोटी सी बातों पर रिश्ते टूटने की कगार पर पहुच जाते है। मित्रों तब ये तीज त्यौहार ही हमारे रिश्तों में गर्माहट लाते हैं। हमें अपनों के करीब ले जाते है। एक दूसरे के निस्वार्थ प्रेम को देख भावनाओं का ऐसा ज्वार उमड़ता है जो इस बंधन को और मजबूत बना देता है। बाकी आप सब समझदार है, निर्णय आप स्वयं करें।
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