कॉलेज के बाद खुदा ना खास्ता नौकरी ना लगे तो भैया घरवाले तो बच्चे की हालत समझ ज्यादा कुछ नहीं कहते पर मोहल्ले की आंटियों की नज़रें और ताने जीना मुहाल कर देते है। अपने बेटे से कहीं ज्यादा चिंता उन्हें पडोसी के लड़के की होती है, उसकी पढाई, नौकरी, छोकरी हर बात में उनकी दिलचस्पी देखने लायक होती है। खुदके लौंडे से दसवी पास ना हो रही, पडोसी के लड़के के BTech के मार्क्स की चिंता हो रखी है। Uncle बेचारे क्या बोलते, उनकी बोलती तो शादी के बाद से ही बंद है। कुल मिलाकर हम पर आंटियों का कहर जारी था।
हम नौकरी की उम्मीद छोड़ चुके थे। पिताजी बैंक PO से लेकर पटवारी तक की परीक्षाओं के आवेदन भरवाने लगे। बहुत अजीब लगता था पर और कोई चारा नहीं था। 30 की उमर पार कर चुकी बिन ब्याही लड़की और निकम्मे लड़के को घर वालों की बात माननी ही पड़ती है, पसंद नापसंद मायने नहीं रखते, आत्म विश्वास की धज्जियां उड़ जाती है।
पर अचानक दिन बदले, हमारे yahoo के inbox में एक कंपनी का इंटरव्यू के लिए बुलावा आया। दिल्ली बुलाया था, 3rd AC का आने जाने का भाड़ा भी दे रहे थे। हम बड़े खुश हुए। रात का खान खाकर, माता पिता का आशीर्वाद ले, दस बजे की ट्रेन पकड़ ली। दिल में घबराहट थी पर ईश्वर पर विश्वास भी था।
नौ बजे कंपनी के दफ्तर पहुचना था पर रेलगाडी भारतीय रीति को मद्देनज़र रखते हुए 2 घंटे की देरी से दिल्ली स्टेशन पहुची। 8:30 बज चुके थे तो हमने waiting रूम में ही खुदको चमका कर भागने में बेहतरी समझी। जैसे तैसे सवा नौ तक वहां पहुचे। देखा तो रंग उड़े चेहरों की पूरी एक जमात वहां पहले से बैठी थी। साफ़ सुथरे कपडे, किसी किसी के गले में टाई, खुरच खुरच कर चिकना किया गया चेहरा, हाथों में जन्म से लेकर आजतक का हिसाब किताब और मुंह में इष्ट का नाम। बड़ा भयभीत कर देने वाला दृश्य होता है। मैं धीमे धीमे क़दमों के साथ एक खाली कुर्सी पर जा बैठा।
पेट खाली था पर इतना फर्क नहीं पड़ रहा था, इतने सारे बन्दे देख पहले ही हालत खराब थी। पहले written हुआ फिर इंटरव्यू होना था। written होते होते तक एक सवा बज चुका था तो हमे खाने के लिए भेज दिया गया। नाश्ता नहीं किया था तो भूख तो बड़ी जबरदस्त लगी ही थी। मैं लम्बे लम्बे क़दमों के साथ डाइनिंग हॉल की तरफ बढ चला पर भाईसाहब ये क्या ? वहां veg के साथ नॉन veg भी सजा हुआ था। गलत नहीं कह रहा पर भैया जिन्होंने बचपन से ना देखा हो तो उनकी हालत खराब होना तो लाजमी होता है, मेरा तो मन खराब हो गया, हिम्मत ही ना हुई खान खाने की। गंध सिर में चढ़ रही थी। मैं भाग कर बाहर आ गया। किसी तरह खुद को संभाल वापस आकर बैठ गया।
दिन यूँ ही बीत गया कुछ नहीं खाया। खाली पेट गैस बन गयी, सिर फटने लगा। जैसे तैसे इंटरव्यू दे कर बाहर आया सोचा बस अड्डे पर कुछ खाकर घर के लिए बस पकड़ लूँगा।
वहां पहुंचा तो पता चला हमारे शहर की बस निकलने ही वाली है। निर्णय लेने का भी वक़्त ना था, बस पकड़ ली। भूख से हालत बेहद खराब थी। पडोसी के patato chips के पैकेट को भिखारियों की तरह देख रहा था। भूख इंसान को पागल बना देती है। रात के 12 बजने को थे, पेट खाली था, दिमाग पूरी तरह सुन्न हो चूका था, हल्की हल्की सी झपकी में भी रोटी के सपने आ रहे थे। मैं पागल होने की कगार पर था, चीखना चाहता था चिल्लाना चाहता था।
लगभग एक बजे ड्राईवर ने गाडी एक होटल पर रोकी, मैं लगभग भागता हुआ बहार आया पर आज भगवान परीक्षा लेने के मूड में थे, होटल के बाहर सींक कबाब लटका था। मैं नाक बंद कर आगे चला और जाकर काउंटर पर खड़े आदमी से मेनू पुछा। दाल फ्राई और चार रोटी का आर्डर दे बाहर आ गया। फिल्मों में सुना था पर सही मायनों में उस वक़्त इंतज़ार का हर एक पल एक सदी की तरह लग रहा था। खाना आया और मैं राक्षसों की तरह उस पर टूट पड़ा। सारी हीरो गिरी निकल गयी, नॉन veg के बगल का खाना खा लिया।
वो दिन हमेशा याद रहेगा। भूख इंसान को पागल बना देती है, उसे किसी भी हद्द तक जाने के लिए मजबूर कर देती है। सही गलत कुछ नहीं दिखता। ज्ञान प्रवचन सब धरे के धरे रह जाते है। इंसान दरिंदा बन जाता है।
समझ सकें तो समझ लीजिये, सड़क किनारे के गरीबों को प्रवचन देने और भिखारियों को कोसने की बजाय हो सके तो अपनी आमदनी का एक हिस्सा ऐसे कामों में लगाए की हर किसी को दो वक़्त का खाना नसीब हो सके। कोई बच्चा भूखा ना सोये। सरकार पर मत छोडिये, वो तो अपनी रफ़्तार से करेगी। आगे बड़ो अपने हिस्से का काम करो।
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