बिलोड़ लेने दो समय को
हमारा जीवन-घट,
अलग हो जाने दो
एक एक अवयव ।
भँवर के तरंगों पर झूलता हुआ
जो श्रृंग तक पहुंचेगा,
मंथन रूकने पर
वही हमारे द्रव्य की पहचान बनेगा।
Sign In
to know Author
- PRATAP SINGH