बचपन में हम बड़े नटखट और शैतान किस्म के बच्चे हुआ करते थे। एक जगह टिक कर बैठना तो हमारी फितरत में था ही नहीं, पहिये लगे थे हमारे पैरों में। दिन भर धमा चौकड़ी, दिन भर मस्ती। शांति किस चिड़िया का नाम है हमें कोई खबर ना थी। हमारी माताजी homework complete कराने के लिए बड़े जतन किया करती थी। कभी डांट फटकार कर तो कभी पिताजी का डर दिखा कर, वो हर मुमकिन कोशिश किया करती थी ताकि हम थोडा पढ़ लिख ले। पर भाई बहते पानी को क्या कभी कोई रोक पाया है ? हम उनके हाथ ही नहीं आते थे।
फिर एक दिन घर के दरवाजे पर कोई साधू बाबा आये, बड़ा अजीब सा look था उनका। बड़ी लम्बी दाढ़ी मूंछे, round round करके लपते हुए लम्बे बाल, पूरे चेहरे पर भभूत, माथे पर टीका, गेरुए वस्त्र, बगल में लटका बड़ा सा झोला। उन्हें देख हम डर कर घर के भीतर भाग आये और माँ की साडी के पल्लू में अपना चेहरा छुपा लिया। दुनिया में वही सबसे सुरक्षित जगह होती है। माँ मुझे देख हल्का सा मुस्कुराई, कटोरे में आटा भरा और बाहर खड़े साधू बाबा के बड़े से झोले में डाल दिया। साधू बाबा तो चले गए पर हमें डराने के लिए हमारी माँ को एक हथियार दे गए। फिर क्या था, जब भी हम उधम मचाते हमारी माँ हमें साधू बाबा के पास छोड़ आने की धमकी दिया करती, कहती की जो बच्चे शैतानी करते है बाबा जी उन्हें अपने झोले में डाल कर ले जाते है। सच में बड़ा भय लगता और हम शांति से बैठ जाते। कभी कभी तो रुआंसे भी हो जाते। कुल मिलाकर माँ की यह बात हम दिमाग में बुरी तरह घर कर गयी, अब हर बाबा हमे राक्षस की भाँती लगने लगे थे। हमें लगता था मानो हर बाबा बच्चा चुराने का काम ही करता है और उसका झोला बच्चों से भरा रहता है।
आजकल भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। कहीं किसी cartoon channel पर गणेश जी स्कूल में किसी बच्चे का होम वर्क कर रहे है तो किसी और बच्चे की पिटाई। छोटा भीम तो कुत्ते से लेकर Dinasours से पंगे ले रहे है। हनुमान जी स्कूल जाते है और रास्ते में डाकुओं से लड़ आते हैं। यही हाल कृष्णा और बाकियों का भी है। जो director जैसे चाहे भगवान को नचा रहा है। असल कथा का तो दूर दूर तक नामो निशाँ भी नहीं है। बस धीरे धीरे यही कहानियाँ बच्चों का सच बन जायेंगी। आज नहीं पर कुछ पुश्तों बाद तो बच्चे यही सोचेंगे की भीम तो कभी बड़े हुए ही नहीं वे हमेशा छोटे ही थे।
देखिये ऐतिहासिक चरित्रों पर धारावाहिक बनाना गलत नहीं है पर साथ ही यह सावधानी भी बरतनी होगी की कहीं हमारी काल्पनिकता मूल कथा और चरित्र का स्वरुप ही ना बदल दे। क्योंकि जैसे गीता और कुरान में लिखी हर एक पंक्ति आज हमारे लिए निर्विवाद रूप से सत्य है वैसे ही यदि आने वाली पीढीयाँ आज की कृतियों को आधार बना सत्य की परिभाषा गढ़ने लगी तो अंजाम भयावह तथा कल्पना से परे होगा।

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