रहबरी करता है कुर-आँ और गीता बनकर
साथ रहता है वही इल्म का दीया बनकर

मैं बख्श देता तुझे, तू अगर दुश्मन होता
तूने लूटा है मगर मुझको मसीहा बनकर

ज़िन्दगी जब भी नए ज़ख्म मुझे देती है
दर्द छलका है कुछ और नशीला बनकर

मुझको अच्छे बुरे हर वक़्त ने तराशा है
में भी चमकूंगा किसी रोज़ तो हीरा बनकर

दीनोदुनिया का ये दरिया बड़ा ही गहरा है
ऐ! ख़ुदा पार लगा दे तू सफीना बनकर

-शिव

Tags: Writing

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