RBI गवर्नर रघुराम राजन की स्थिति उस बिहारी ग्रामीण महिला की तरह हो गयी है, जिसे उसका शहरी पति जीन्स टॉप में देखने की ख्वाहिश रखता है और सास-सासुर दो हाथ जितने घूंघट के पीछे। दोनों की इच्छाओं का सम्मान करते-करते बेचारी का हुलिया कुछ अजीब ही हो जाता है। अंत में लोकल जीन्स, टॉप, गले में लटकता काले बारीक मोतियों वाला मंगलसूत्र और मांग में मुट्ठी भर सिन्दूर, उसको मॉल बाजारों में घूमती तथाकथित मॉडर्न छोरियों में मजाक का विषय बना देता है।
रघुराम के साथ भी कुछ यही हो रहा है, एक तरफ बुरे आर्थिक हालातों से जूझ रहा व्यापार जगत है, जो उनसे ब्याज दरों में कमी की उम्मीद लगाए बैठा था, दूसरी तरफ महंगाई की मार खा रही इस मुल्क की जनता जो इस महगाई से निजात दिलाने के लिए उन पर नज़रें गड़ाई बैठी है। जाए भी तो जाए कहाँ ? बस इसी बैलेंस का परिणाम था आज की दिशाहीन मौद्रिक नीति। आखिर बिना सही राजनैतिक नेतृत्व के RBI भी कितने दिन अर्थ्व्यस्वस्था को संभाल सकती है।
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