बारिश की इन बूंदों में
सारी फ़िक्र भुला देना चाहती हूँ।
अतीत की यादों को भुला
फिर नए सपने संजोना चाहती हूँ।
आई जैसे आज ये वर्षा है
घनघोर काले बादल लिए।
आएगी कल नयी रौशनी
संग अपने खुशियाँ लिए।
उन खुशियों को समेट लेना चाहती हूँ।
आज अपने सपनो से भी आगे जाना चाहती हूँ।
वर्षा और मन की भावनाओ का संगम ही कुछ अनोखा है। जिस तरह मिटटी में छोटे छोटे कटाव कर बारिश का पानी नदियों तालाबों में जा मिलता है, उसी तरह मन की व्याकुलता, तरल होकर कई भावनाएं निकालते हुए, तरह तरह के आकार बनाती कभी अद्भुत रूप से प्रसन्न करती तो कभी मन में उफान उठाती , वर्षा के सानिध्य में आती है और अपने साथ बहा ले जाती है।
आज बारिश ने मेरे साथ कुछ ऐसा ही किया। ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ। बचपन से अज तक अनगिनत बार वर्षा ने कई बार मेरी कई यादों को बरबस ही आँखों के सामने एक परदे पर चित्रित किया है। पर आज मैंने अतीत को याद नहीं किया। आज एक नया सपना संजोया, अपने नए कल का , आने वाली सुबह का। वो सुबह जो निश्चित ही अपने साथ मुस्कान लाएगी। मेरे जीवन के लक्ष्य को पाने में मेरा साथ देगी।
आज मैं आगे बढ़ना चाहती हूँ। अपने सपनो से भी आगे। इन बादलों से भी आगे।
आशा है ऐसा कर पाऊंगी।