भूल गई थी कि
मैं एक नारी हूँ.… मनुष्य नहीं,
बस यही मेरी गलती है.
भूल गई थी कि
मैं दूसरों की इच्छाओं, विचारों और मर्यादाओं
का बोझ उठाने के लिए पैदा हुई हूँ,
ऐसे में स्वयं की चाह को अंकुरित होने दिया.…
भला इससे बड़ा अपराध और क्या है !
भूल गई थी कि
मैं दासी-योनि में पैदा हुई हूँ
और हर तरफ मेरे भाग्य-विधाता खड़े हैं
मुझे अपनी नज़र नीची किये हुए
उनकी आज्ञा का पालन करते जाना है.
क्योंकि मेरी नज़र उठते ही
दो कुलों की मर्यादाओं का भुरभुरा महल
रेत की तरह ढह जाता है.
भूल गई थी कि
नर-पशु भी, पतित्व का अमृत पान करते ही
परमेश्वर हो जाता है,
हमारे तन, मन और आत्मा,
तीनो का स्वामी बन जाता है.
यह अलग बात है कि
वह चिर-स्वतंत्र होता है
और हम सात जन्मों के लिए
दासता-धर्म स्वीकारने को बाध्य।
माँ ! तुमने बहुत कुछ सिखाया था
लेकिन मैं सब भूल गई.
भूल गई थी कि
मैं एक नारी हूँ … मनुष्य नहीं।
मेरी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी
तभी अर्थ-पूर्ण और प्रशंसित होती हैं
जब वे किसी के स्वार्थ की पूर्ति कर सकें,
किसी के अहम की तुष्टि कर सकें।
भूल गई थी कि
मैं मनुष्य नहीं अपितु,
हाड़ मांस की बनी, भोग की वह थाली हूँ
जिसमें अगर दुर्योगवश
कोई छद्मवेशी कुत्ता
साधिकार मुँह मार देता है
तो उम्र भर के लिए
मेरी आत्मा तक जूठी हो जाती है
और मेरी भावनाएँ भी
किसी सद्पुरुष के लिए वर्जित हो जाती हैं.
दीदी, तुमने बहुत कुछ बताया था
लेकिन मैं सब भूल गई.
मैं भूल गई थी कि
मुझमें सीता और सावित्री का रूप देखा जाता है
देखने वाला भले ही रावण हो.… उससे कोई फर्क नहीं पड़ता
आखिर उसने स्वामी-योनि में जन्म लिया है.
भूल गई थी कि
मेरी इच्छाओं के अंग अंग को छेद कर
मुझे महिमा मंडित करने वाले
शर्म, शील और सहनशीलता के पहनाये गए आभूषण
मेरे बंधन नहीं, श्रृंगार हैं
क्या फर्क पड़ता है अगर उनसे बिंधकर
मेरी रूह से हर पल लहू टपकता रहे.
सखियो, तुमने बहुत कुछ समझाया था
लेकिन मैं सब भूल गई.
लेकिन सुनो,
अब मुझे अपनी भूल में ही
उन्मुक्त होकर कुछ पल जी लेने दो,
थोड़ी देर के लिए ही सही
अपनी चाह का मान कर लेने दो.
एक बार ही सही
मनुष्य होने के अहसास को छू लेने दो.
अब और मत बाँधो मुझे
अपने प्रपंच के जहरीले नागपाश से.…
मैं जानती हूँ
नहीं काट पाऊँगी उसे
क्योंकि
मैं एक अबला हूँ.…निरीह हूँ
इसलिए नहीं कि शारीरिक-क्षीणता है
बल्कि इसलिए कि मेरी जाति वालियाँ ही
मेरे वक्ष में
अपनी चिर-पोषित हीनता के नाखून गड़ाकर
मेरा रक्त निचोड़ लेती हैं
और मेरी नसों में
अपनी दासता का रंग भर देती हैं.