क्या पता कल इस जहां में मैं रहूँ कि न रहूँ
पर तुम्हारे साथ मेरा प्यार तो हर पल रहेगा

सिर टिका कर तुम सदा जिस पर,
सजाती वृंत, पल्लव, पुष्प स्वप्नों के
खुले और बंद दृग के संपुटों में
वह न विस्तृत वक्ष मेरा कल रहे तो क्या हुआ
अनुनाद मेरी धडकनों का सर्वदा
हिय को तुम्हारे, प्राण-प्रिय, गुंजित करेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

जगत के व्यवहार से उपजे हुए
हर कष्ट, हर संताप से
थी मुक्त हो जाती सदा जिसमें सिमट कर
वह न मेरे बाजुओं का आवरण यदि कल रहे तो क्या हुआ
स्पर्श मेरा, घनी छाया सा तुम्हें
हर पल प्रिये आवृत करेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

हर बात, करती लोक की विस्मृत,
भुला देती सदा सुध-बुध, लिपट कर बेल सी जिससे
अगर वह गात का मेरे तना कल न रहे तो क्या हुआ
वट वृक्ष सा सम्मुख प्रिये
यहसास, नित, अस्तित्व का मेरे रहेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

कल अगर मैं न रहूँ तो तुम न अपना दिल दुखाना
प्रीत को अपने सजाना पूर्ववत ही
गीत लिखना मिलन के और गुनगुनाना
भूल कर भी मत कभी उर में विरह के भाव लाना,
स्वर तुम्हारा इन हवाओं में मुझे
चिरकाल तक जीवित रखेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

निशा के अंतिम प्रहर में जब कभी भी अचकचाकर
नींद खुल जाए किसी मृदु स्वप्न का आभास पाकर
सोचना मैंने छुआ पलकें तुम्हारी
चांदनी के संग झरोखे से उतर कर
बंद कर लेना दृगों को पुनः तुम करवट बदल कर
ले चलूँगा मैं तुम्हे नव स्वप्न नगरी,
नींद बन, आगोश में भर
भोर का तारा हमारी राह आलोकित करेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

सांझ जब घिरने लगे , रवि कर चुका प्रस्थान हो
खोने लगें चारो दिशाएं, क्षितिज भी सुनसान हो
किलकारियां भरते हुए निज घोसलों को
चल पड़े हों पक्षियों के झुण्ड जब
प्रबल स्मृति से हृदय में हूक जो उठने लगे
चुपचाप आकर बैठना उस सघन गुलमोहर तले
और देखना तुम झूमती मृदु डालियों को नेह से
पुष्प बनकर चू पडूंगा मैं तुम्हारी अंजली में
फुसफुसाकर कान में
कुछ पवन का झोंका कहेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

जब दिवस के ताप से हो गात थक कर चूर
फिर भी नींद आँखों में न आए रात को
नेह की चादर बिछाकर बैठ जाना
खोल लेना पोटली तुम याद की
आह्वान मेरा सजल नयनो से भले करना
मगर तुमको कसम मेरी
विदा करना मुझे मुस्कान का उपहार देकर
नित्य ही स्मित तुम्हारा पुष्प बनकर
राह में मेरी खिलेगा
प्यार तो हर पल रहेगा

क्या पता कल इस जहां में मैं रहूँ कि न रहूँ
पर तुम्हारे साथ मेरा प्यार तो हर पल रहेगा

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