सीता भी विश्वास से हारी थी
एक लछमन रेखा ही तो थी
जो मर्यादा को थामे थी
महसूस किया है मैंने
उस व्यथा को , सीताद्वन्द को
निश्छल स्वभाव से विश्वास करे
या मर्यादा की रूखी लकीर तके
सीता ने विश्वास किया और हरी गयी
रावन की शक्ति सीता को न हर पाई
साधू का रूप सीता को हर गया
विश्वास की भेट चढ़ गए
सत्कर्म , प्रेम और स्वाभिमान
कुछ न रहा बचाने को ,इठलाने को
ना पवित्रता और ना ही अस्मिता
एक ही दांव में तुमने सब हर लिया ....