पुरुष होने का अभिशाप ही तो था
वो तुम्हारा बेवजह मुस्कुरा देना ,
और मेरा एक अप्सरा को गढ़ देना
जैसे मंदिर में एक पत्थर की मूर्ती। .

पत्थर की मूर्तियों के ह्रदय नहीं होते
सिर्फ होते हैं सुन्दर आकार और मुद्राएँ,
वो मुस्कान कितनी क्रूर हो सकती है
पीछे छिपी हो जब तराशे जाने की व्यथा। .

हाँ तुम ने प्रेम की बातें बहुत की थी मुझसे
और अक्सर मुझसे भरोसे की चाह की थी ,
पर शायद मेरे विश्वास की रस्सी ही थी
जो मेरा दम घोटने के लिए तुमने चुनी ...

© Copyrighted material, all rights reserved.

Sign In to know Author