सुबह डिस्कवरी चैनल पर अफ्रीकन शेरों पर कार्यक्रम आ रहा था। शेर, यह वो शब्द है जो कमजोर दिलों में खौफ पैदा कर देता है। वीरता, दृडता और शौर्य का प्रतीक है यह अलफ़ाज़। बात जंगल के शेर की करें तो एक युवा ताकतवर शेर कुछ मादाओं और शावकों वाले झुण्ड का मुखिया तो होता ही है पर साथ ही जंगले के एक बहुत इलाके पर उसकी हुकूमत भी होती है। इस पूरे इलाके में शिकार का हक केवल उसका होता है, मादाएं वंश वृद्धि और शावकों के पालन पोषण की जिम्मेवारी निभाती है। अपनी हुकूमत और झुण्ड की मादाओं पर अपना अधिकार खो जाने के भय से मुखिया, नर शावको को थोडा व्यस्क होते ही झुण्ड से बाहर खदेड़ देता है। वक़्त बदलता है, वक़्त के साथ शेर बुढा हो जाता है, रोगों से ग्रस्त, असहाय और निर्बल। झुण्ड के खदेड़े हुए नर अब फुर्तीले और ज्यादा ताकतवर हो गए होते है, झुण्ड और मादाओं पर अधिकार पाने को वे आतुर होते है, वयस्कों का सबसे शक्तिशाली नर मुखिया को चुनौती देता है। वृद्ध शेर हार नहीं मानता, वह तेज़ दहाड़ के साथ चुनौती को स्वीकार करता है। घमासान युद्ध होता है और जो पहले से निश्चित था वही होता है, व्यस्क के मजबूत पंजे और जबड़े वृद्ध शेर के शरीर में कई जगह घाव कर देते है, उसके पिछले पैर की हड्डी तक टूट जाती है। लहुलुहान वृद्ध घसीटता हुआ झुण्ड से कहीं दूर एकांत में चला जाता है और भोजन के अभाव में एकांत मृत्यु प्राप्त करता है। इसी के साथ एक युग की समाप्ति हो जाती है। शायद वह कुछ और समय जीवित रह पाता यदि बदलाव को स्वीकार कर लेता। यही नियम है।
BJP में Narendra Modi की ताजपोशी और अडवाणी युग का अंत भी कुछ इसी तरह हुआ है।