बड़ा मुश्किल निर्णय है किस राह को अपनाऊं ? जन्म से में एक हिन्दू हूँ, हमारे कुछ रीति रिवाज, कुछ मान्यताएं हैं, एक पूरी सभ्यता है, जिसे बनाये रखना है। गंगा जमुना के घाटों पर हो रही आरतियाँ, वो मंदिर की घंटियों की स्वर लहरियां, पाठ-पूजा, मंत्रोचारण, कर्म काण्ड मेरे जीवन का संगीत है। राम का जीवन मेरी प्रेरणा है तो कृष्ण की गीता मेरी मार्ग दर्शक ।
दूसरी तरफ है सर्व धर्म समभाव की वो सोच है जो मुझे सभी धर्म जातियों का सम्मान करना सीखाती है मुझे जाति धर्म के भेद से ऊपर उठकर इंसान और इंसानियत का पाठ पढ़ाती है।
पर संशय यही से शुरू होता है, सेक्युलर सोच जहां मुझे सहिष्णु बनाती है वहीँ अत्यधिक सहिष्णुता मेरी संस्कृति के लिए घातक हो रही है। कोई आया थोड़ी जगह मांगी फिर पसर गया पर मैं कुछ ना बोला, मेरे ही चार दीवारी को तोड़ अपना आशियाना बना लिया, फिर भी मैं चुप रहा, अब मेरी ही जमीं पर मेरे अस्तित्व पर प्रश्न कर रहा है।
बात राम मंदिर की नहीं है बात अस्तित्व की है राम मंदिर तो एक प्रतीक मात्र है। मैं किसी धर्म का विरोधी नहीं हूँ पर याहन प्रश्न मेरे अस्तित्व का है। मैं तक तक सेक्युलर हूँ जब तक मेरे हिंदुत्व पर आंच नहीं आती।
मैं एक सेक्युलर हिन्दू हूँ