दबे पाँव तेरी खामोश यादें जब शोर करने लगती हैं
मैं फिर से नींद का बहाना दूंढ लेता हूँ,
ख्वाबों में तेरी परछाई जब रोशन हो उठती हैं
मैं फिर से नींद का बहाना ढूंढ लेता हूँ,
पहली बारिश को जब फिर से तरसने लगते हैं
मैं फिर से नई ज़मीन ढूंढ लेता हूँ,
ये नादान दिल जब फिर से भटक जाता है
मैं फिर से नए ख्वाब बुन लेता हूँ,
पहला नशा जब फिर सर चढ़ने लगता है
मैं फिर से नया नशा ढूंढ लेता हूँ,
जिंदा हूँ
दिल से जी रहा हूँ
गीले घूँट प्यार के
फिर से पी रहा हूँ,
वक़्त जैसे पलट गया है,
ये आशिक़ फिर इश्क से उलझ गया है,
तेरी बाहों की क्या दाद दूं,
नए ज़ख्म की तलाश में
ये आशिक़ फिर इश्क से उलझ गया है...
Tags:
Sign In
to know Author
- ADITYA PANT