बचपन में पिताजी हमें exam में पहली श्रेणी laane के लिए कभी नई साइकिल, कभी किसी और इनाम का प्रलोभन दिया करते थे, हम जोश में खूब मेहनत किया करते थे और उसे हासिल करने की कोशिश करते थे, बात यहाँ केवल परीक्षा में अंक लाने तक सीमित नहीं है हम बात कर रहे है प्रयास की, आगे बढ़ने की कोशिश की, कुछ पाने की चाहत की, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी शिद्दत से जुट जाने की। हर कोई अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है, किसी शिखर को छू जाना चाहता है, इसके लिए वो जी तोड़ मेहनत भी करता है। पर क्या हो जब सब कुछ बिना मेहनत मिलने लगे, कुछ पाने की चाहत करे और मिल जाए, सपना देखे और पूरा हो जाए। बस फिर क्या है आराम की जिंदगी, पत्ता भी कौन हिलाएगा ?
यही आज हो रहा है, राजनैतिक पार्टियों में होड़ लगी है मुफ्त का सामान बांटने की, गेहूं-चावल से लेकर, टेबलेट, लैपटॉप, मोबाइल, साइकिल, बिजली तक सब कुछ बांटा जा रहा है सरकारी खजाने के मुंह खोल दिए गए है। वोट पाने की चाहत में जनता के मुंह में नोट तक ठूसे जा रहे है। नरेगा में नाम लिखा दीजिये, सरपंच अपना हिस्सा काट बाकी रकम आपके घर पहुंचा देगा।
जिस मुल्क का प्रधानमंत्री, अर्थशास्त्र का सचिन तेंदुलकर माना जाता है, उस मुल्क की ऐसी दुर्गति देख बड़ा दुःख होता है। जहाँ नीतियां बननी चाहिए, लोगों को स्वावलंबी और आत्म निर्भर बनाने की वहां उन्हें भिखारी बनाया जा रहा है। खैरात की जिंदगी जीने की आदत डाली जा रही है। जी भर कर बच्चे पैदा करें, सरकार है ना खाना खिलाने के लिए, हाँ बस उनकी पार्टी को वोट देते रहे।
क्या इस तरह चलेगा ये मुल्क ? एक ओर जहां हम आर्थिक मंदी की कगार पर हैं वहीं दूसरी ओर वोट बैंक की खातिर एक के बाद एक लाखों करोड़ रूपये की खैरातें बांटी जा रही है। वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, रुपया औंधे मुंह गिर रहा है, देश की सुरक्षा के लिए हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए पैसे नहीं, पर गरीबों को मोबाइल बांटने की तैयारी चल रही है। विकास के विज्ञापनों में सालों से दिल्ली मेट्रो और एक दो हवाई अड्डों के फोटो चस्पा कर वाहवाही बटोरने की कोशिश होती है। कुल मिलाकर मुल्क का बंटाधार हो रहा है फिर भी भारत निर्माण हो रहा है।