पुराने दिन
मैं चलता जा रहा हूँ
थक गया हूँ लेकिन
मैं चलता जा रहा हूँ
बहुत दूर आ गया लेकिन
मैं बढ़ता जा रहा हूँ
मेरा घर अतीत में घंस गया है
मेरा बचपन सपनो में फंस गया है
मेरी मुस्कराहट पर सिलवटे बढ़ने लगी हैं
लौ जो कभी तेज़ थी अब ढलने लगी है
मेरी हथेलियाँ अब कोमल नहीं रही
इन पर बनी लकीरें अब अधूरी नहीं रही
जिन्हें थाम कर बेफिक्र ये दुनिया देखी
वो अंगुलियाँ अब मेरे पास नहीं रही
ख्वाहिश है खुद को कहना है कि
बहुत प्यारे थे पुराने दिन
बहुत सारे थे पुराने दिन
मुझे ही जल्दी पड़ी थी इन्हें बिताने की
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- ADITYA PANT