ये दुनिया एक अजीबोगरीब शाम है,
यहाँ डूबता सूरज चमक दमक का पैगाम है,
रात का इंतज़ार करती मेरी मजबूर नज़रें
एक बार फिर शर्म से झुक जाने को तैयार हैं.
सर्द सी रूखी तृष्णा फिर से किवाड़ खटखटाएगी,
बेबसी की राख मेरे दिल को फिर से रंग जाएगी,
सूने हाथ एक बार फिर से ये दरवाज़ा खोल देंगे,
बीती रात को भुला कर फिर किसी और को थाम लेंगे.
मन का खोकलापन तन की टीस किसे समझाउं,
किसे कहूँ की आज दिन भर के लिए रुक जाओ,
हर कोई रात होने का इंतज़ार कर रहा है,
मेरे दर्द को खरीदने के लिए कोई फिर किवाड़ खटखटा रहा है.
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- ADITYA PANT